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________________ आप्तवाणी-८ ८५ वहाँ पर उसका भोजन भी वैसा होता है, ब्लड वगैरह सब जानवर का ही होता है। लेकिन उस गति में सबकुछ भोगने के लिए जाना पड़ता है। ऐसा नहीं होता न तब तो लोग नौकरी करने जाते ही नहीं और चोरी करके ही खाते ! लेकिन इसका तुरन्त ही फल मिल जाता है दूसरे जन्म अब यहाँ पर अणहक्क का खा जाते हैं, मिलावट करके बेचते हैं, अणहक्क का भोगते हैं, ये सभी पाशवता के विचार हैं, यह जानवर में जाने की तैयारी हो रही है। हमें समझ जाना है कि ऐसे विचार उसे जानवर में ले जाएँगे और यहाँ पर सज्जनता के विचार उसे फिर से मनुष्य में लाएँगे। और जो खुद के हक़ की चीज़ हो, उसे भी दूसरों को दे दे, ऐसे 'सुपरह्यमन' विचारवाला हो तो वह देवगति में जाएगा। प्रश्नकर्ता : पशुयोनि में उसे अच्छे-बुरे विचार आते हैं क्या? दादाश्री : नहीं। वहाँ पर तो ऐसे कोई भी विचार नहीं होते। पशुयोनि का मतलब सिर्फ भोगने की योनि। देवगति भी भोगने की और नर्कगति भी सिर्फ भोगने के लिए ही। और सिर्फ मनुष्य जन्म में ही कर्म बाँधना और कर्म भोगना दोनों साथ में होता है। प्रश्नकर्ता : क्रेडिट और डेबिट दोनों बंद हो जाएँ तो? दादाश्री : क्रेडिट और डेबिट, पुण्य और पाप दोनों बंद हो जाएँ तो मोक्ष में जाएगा! गति में भटकने का कुदरती नियम प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा कहते हैं न, मानवजन्म जो कि चौर्यासी लाख फेरों में भटकने के बाद मिला है, तो वापस इतना ही भटकना पड़ता है और उसके बाद मानवजन्म मिलता है? दादाश्री : नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। एक बार मनुष्य योनि में आ गया न, फिर वापस पूरी चौर्यासी में नहीं घूमना पड़ता। उसे यदि पाशवता के विचार आएँ तो आठ जन्मों तक उसे पशुयोनि में जाना पड़ता है, वह
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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