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________________ ७० आप्तवाणी-८ दादाश्री : निगोद अर्थात् एक देह में कितने ही सारे जीव होते हैं। जैसे एक आलू में बहुत सारे जीव होते हैं न? उसी तरह निगोद में बहुत सारे जीव होते हैं। उन जीवों को नाम नहीं दिया गया होता है। इस आलू को तो नाम दिया हुआ है। प्रश्नकर्ता : तो शुरूआत, नाम देते हैं वहाँ से होती है? दादाश्री : नहीं। शुरूआत तो उससे भी पहले से है। जो जीव अभी तक व्यवहार में नहीं आए हैं, उन्हें अव्यवहार राशि कहते हैं। प्रश्नकर्ता : निगोदवाला जो आत्मा होता है, उसका प्रदेश कहाँ है? दादाश्री : यही भूमि! आकाश में सब जगह पड़ा हुआ है। पूरा लोकाकाश निगोद से भरा हुआ है। प्रश्नकर्ता : अव्यवहार राशि में भी जीवों की उत्पत्ति तो है न? दादाश्री : नहीं। वहाँ उत्पत्ति नहीं होती। वहाँ तो अनंत जीव हैं। यानी अनंत में से चाहे कितना भी कम हो, फिर भी उसका अनंतपना जाता नहीं है। यह बुद्धि से नापने जैसा नहीं है, वहाँ बुद्धि पहुँच ही नहीं सकती। अनंत में से कम होता ही नहीं। अनंत में से चाहे कितना भी निकाल लो, फिर भी अनंत ही रहता है, उसीको अनंत कहते हैं। यानी वहाँ पर कोई कमी हो जाएगी, ऐसा नहीं है। और वहाँ सिद्धगति में भी अनंत हैं, कि वहाँ पर भले ही कितने ही बढ़ जाएँ, फिर भी अनंत के अनंत ही रहते हैं। ब्रह्मांड में सिर्फ मनुष्य ही संख्यात हैं, अन्य सारी आबादी असंख्यात है। संख्यात अर्थात् कम-ज्यादा होनेवाली, घटती-बढ़ती है, और इस घटनेबढने के भी नियम हैं वापस। यह जो कम-ज़्यादा होता है न, तो वह इसकी 'नोर्मेलिटी' है। कई बार जब बढ़ जाता है, तब इतनी हद तक आबादी बढ़ती है और वापस घटती है तब इतनी हद तक आबादी घटती है, ऐसी 'नोर्मेलिटी' है। अब जब कम होने की शुरूआत होगी न, तो पहले अनंत भाग कम
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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