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________________ ६४ आप्तवाणी -८ जगह पर अधिक इकट्ठे हो जाएँ, तब अणु कहलाते हैं । तो इन परमाणुओं को तो देखा नहीं जा सकता, किसी भी प्रकार से ! केवळ ज्ञानी ही इसे देख सकते हैं, और कोई नहीं देख सकता ! ऐसा है न, परमाणु रूपी हैं और आकाश अरूपी है। और ये जो चार तत्व हैं न, पृथ्वी - तेज - वायु - जल, ये सब रूपी हैं (जड़ तत्व की अवस्थाएँ हैं)। यानी रूप में से रूप उत्पन्न हुए हैं। जब देखोगे, तब ऐसे का ऐसा ही ... प्रश्नकर्ता : साकार जगत् निराकार में से बन सकता है क्या ? दादाश्री : निराकार में से साकार जगत् बना ही नहीं है । साकार वस्तु अलग ही हैं। इस साकार शब्द का उपयोग आप जिस तरह से करते हो, साकार वैसा नहीं है। ये तो सब पर्याय हैं । और पर्याय सभी विनाशी हैं, उत्पत्ति होती है और विनाश होता है । फिर वापस उत्पन्न होते हैं और विनाश होता है। और शाश्वत चीजें शाश्वत ही रहती हैं । कोई शाश्वत चीज़ उत्पन्न नहीं होती, और उसका विनाश भी नहीं होता। यानी शाश्वत चीज़ें शाश्वत रहती हैं और उनमें से उत्पन्न होनेवाले पर्यायों का तो विनाश होता रहता है, उत्पन्न होते रहते हैं और विनाश होता रहता है। जो जन्म लेता है, वह मरता है। उससे आत्मा को कोई लेना-देना नहीं है । इस प्रकार यह जगत् अलग ही तरह से चलता है, इसलिए घबराने जैसा नहीं है कि यह दुनिया एक दिन टूट पड़ेगी। ऐसा-वैसा कोई कारण नहीं है। एक्ज़ेक्ट ऐसे का ऐसा ही रहेगा। सूर्य, चंद्र, तारे जब भी देखोगे, जब भी जन्म लोगे तब ऐसे के ऐसे ही दिखेंगे ! प्रश्नकर्ता : कुछ लोग 'यह भगवान की इच्छा थी' ऐसा अर्थघटन करते हैं। लेकिन वास्तव में तो ऐसा है कि खुद अद्वैतभाव में थे इसलिए एकांतिक लगता था, अत: संकल्प करके द्वैतभाव में आए और उससे सृष्टि का सर्जन हो गया । दादाश्री : यदि संकल्प करे तो वह भगवान ही नहीं है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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