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________________ ५० आप्तवाणी-७ निकलें कैसे? उसके बारे में सवाल पूछकर जवाब प्राप्त कर लेने चाहिए और आपको इस उलझन में से निकलने के रास्ते ढूँढने चाहिए। जो उलझनों में से निकल चुके हैं, वे हमें उलझन में से बाहर निकाल देंगे, बाकी इस उलझन में से कोई निकला ही नहीं है। वही हमें उलझन में डाल देता है न! आपको कभी उलझन में से निकलने की इच्छा होती है क्या? पैसों के बिस्तर बनाने से भी नींद नहीं आती और उससे कोई सुख नहीं मिलता। कितने भी पैसे हों, तब भी दुःख! उन पैसों को भी फिर रखने जाना पड़ता है, फिर उन्हें संभालना भी दुःख, और खर्च हो जाएँ उस घड़ी भी दुःख, खर्च करते समय दुःख होता रहता है, कमाते समय भी दुःख होता रहता है! यानी जहाँ पर दुःख और सिर्फ दुःख ही है, जन्म लिया तब एक तरफ के रिश्तेदार थे, फादर-मदर और जब शादी की तब ससुर-सास, दादीसास, मौसीसास, वे सब मिले। ये उलझनें क्या कम थीं, कि और बढ़ाई! जगत् का रूप ही उलझन! यानी यह उलझन है, उसमें कुछ पूछकर अपनी उलझन निकाल लें ऐसा रास्ता ढूँढ निकालना चाहिए। ऐसा पूछो कि आपके मन में से सभी उलझनें निकल जाएँ, वर्ना यह जगत् तो निरा उलझनोंवाला ही है, पूरा। और हमने क्या कहा है कि द वर्ल्ड इज़ द पज़ल इटसेल्फ। यह इटसेल्फ पज़ल हुआ है। गॉड हेज़ नोट पज़ल्ड दिस वर्ल्ड एट ऑल। यदि भगवान ने पज़ल किया होता न, तो ये लोग उसे पकड़कर बुलवाते कि क्यों लोगों को परेशान कर रहा है, बेकार में? और कहना पड़ता कि क्या यह तेरी बपौती है कि लोगों का बिगाड़ रहा है? लेकिन यह किसी की बपौती नहीं है। यह तो हर किसी की खुद की संपत्ति है और जिन्हें पोतापणुं (मैं हूँ और मेरा है, ऐसा आरोपण। मेरापन) लगा उन सभी की जायदाद है, लेकिन उस ज़ायदाद को भोगना नहीं आता।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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