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________________ आप्तवाणी- - ७ पहले कुछ जुलाब की दवाई देते हैं, पेट को साफ करने के बाद ओपरेशन करते हैं, उसी तरह हमारे यहाँ साफ करने के बाद ओपरेशन होगा, फिर उलझनें निकल जाएँगी । फिर हमारे कहे अनुसार चलेगा तो फिर से उलझनें नहीं आएँगी। वर्ना यह जगत् तो पूरा उलझनों से ही भरा हुआ है। भले ही कितने भी शास्त्र पढ़े, कुछ भी करे, फिर भी उलझनें जाएँगी नहीं । ४८ उलझनों का 'एन्ड' कब आएगा ? रिलेटिव और रियल, ये दो ही चीज़ें जगत् में हैं। ऑल दीज़ रिलेटिव्ज़ आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट और रियल इज़ दी परमानेन्ट । अब परमानेन्ट भाग कितना और टेम्परेरी भाग कितना, उनके बीच लाइन ऑफ डिमार्केशन डाल दें, तो उलझनें बंद हो जाएँगी, नहीं तो उलझनें बंद नहीं होंगी। चौबीसों तीर्थंकरों ने वह डिमार्केशन लाइन डाली थी । कुन्दकुन्दाचार्य ने यह लाइन डाली थी। अभी अपने यहाँ पर डिमार्केशन लाइन डाल देते हैं कि तुरंत उसका सब ठीक हो जाता है। रिलेटिव और रियल, इन दोनों की उलझनों के बीच लाइन ऑफ डिमार्केशन डाल देते हैं कि यह भाग तेरा और यह पराया भाग है। अब पराये भाग को ‘मेरा' मत मानना । उसे ऐसा समझा दिया कि उसका समाधान हो जाता है। यह तो पराया माल ले लिया है, उस वजह से कहासुनी चल रही है । झगड़े चलते ही रहते हैं। उलझन यानी झगड़े चलते ही रहेंगे और एक भी खुद की भूल दिखेगी नहीं । ऐसे तो है पूरा ही भूलवाला बहीखाता, लेकिन खुद की भूल क्यों नहीं दिखती? कि खुद वकील, खुद जज और खुद ही अभियुक्त, फिर खुद गुनाह में आएगा ही नहीं न? और दूसरों के सभी गुनाह निकाल बताएगा। यानी रिलेटिव और रियल का ज्ञान होने के बाद खुद की ही भूलें दिखेंगी । जहाँ देखो वहाँ पर खुद की ही भूलें दिखेंगी और भूल है ही खुद की। खुद की भूलों से यह जगत् खड़ा है, यह जगत् किसी की भूल से नहीं खड़ा है। जब खुद की भूलें खत्म हो जाएँगी तो फिर वह सिद्धगति में ही चला जाएगा !
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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