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________________ आप्तवाणी-७ नुकसान होता है, वह भी कोई करवा रहा है, फायदा होता है वह भी कोई करवा रहा है। आपको ऐसा लगता है 'मैं कर रहा हूँ' वह इगोइज़म है। यह कौन करवा रहा है? उसे पहचानना पड़ेगा न? हम उसकी पहचान करवा देते हैं। जब ज्ञान देते हैं, तब सबकुछ समझा देते हैं कि 'कौन कर रहा है?' २२ एक स्वसत्ता है, दूसरी परसत्ता है । स्वसत्ता, कि जिसमें खुद परमात्मा बन सकता है। जबकि पैसा कमाने की आपके हाथ में सत्ता नहीं है, वह परसत्ता है । तो पैसे कमाना अच्छा या परमात्मा बनना अच्छा? पैसे कौन देता है? वह मैं जानता हूँ। पैसे कमाने की सत्ता यदि खुद के हाथ में होती न, तो झगड़ा करके भी कहीं से भी ले आता। लेकिन वह परसत्ता है । इसीलिए भले ही कुछ भी करो, फिर भी कुछ होगा नहीं। एक व्यक्ति ने पूछा कि, 'लक्ष्मी किस जैसी है ?' तब मैंने कहा कि, 'नींद जैसी । ' कुछ लोगों को लेटते ही तुरंत नींद आ जाती है और कुछ लोगों को पूरी रात करवटें बदलते रहने पर भी नींद नहीं आती, और कुछ नींद के लिए गोलियाँ खाते हैं। यानी यह लक्ष्मी आपकी सत्ता की बात नहीं है, यह परसत्ता है। और परसत्ता के लिए परेशान होने की हमें क्या ज़रूरत ? इतना पैसा! लेकिन मौत नहीं सुधरती ! जैसे शक्करकंद भट्ठी में भुनता है न, वैसे सारी ज़िंदगी ये मनुष्य भुन रहे हैं। प्रश्नकर्ता : हाँ, घुटन में ही जी रहे हैं। दादाश्री : नहीं जीएँ तो क्या करें? कहाँ जाएँ वे? यह जीना भी अनिवार्य है फिर और मरने की भी किसी के हाथ में सत्ता नहीं है। मरने जाएँगे, तब पता चलेगा। पुलिसवाला पकड़कर केस करेगा । जैसे जेल में गए हुए व्यक्ति को मजबूरन सबकुछ करना पड़ता है न, वैसे ही यह जीना भी अनिवार्य है, पैसा भी अनिवार्य है।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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