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________________ लक्ष्मी की चिंतना (२) रे।' मेरे पासता जी तो तीन लाही ले जाया तब वह कहने लगा कि, 'वह तो अच्छा है कि साथ में नहीं ले जाया जा सकता। यदि साथ में ले जाया जा सकता न, तो मेरे पिता जी तो तीन लाख का कर्ज हमारे सिर पर रखकर जाएँ ऐसे हैं। मेरे पिता जी तो बहुत पक्के हैं। इसलिए नहीं ले जाया जा सकता वही अच्छा है। वर्ना पिता जी तो तीन लाख का कर्ज खकर हमें भटका मारे।' मेरे पास तो पहनने को कोट-पेन्ट भी नहीं बचे! साथ में ले जाना होता न तो हमें खाली कर देते, ऐसे पक्के हैं!' प्रश्नकर्ता : कर्ज करके भी ले जाते। दादाश्री : पैसा कर्ज करके भी खुद साथ में ले जाते लेकिन यह देखो वह कहता है न कि, 'नहीं ले जा सकते वही अच्छा है, वर्ना मेरे पिता जी तो तीन लाख का कर्ज छोड़कर जाएँ ऐसे हैं!' संतोष लक्ष्मी से रहता है या ज्ञान से? प्रश्नकर्ता : ये लोग पैसों के पीछे पड़े हैं, तो संतोष क्यों नहीं रखते? दादाश्री : अपने को कोई कहे कि संतोष रखना। तब हम कहें कि 'भाई, आप क्यों नहीं रखते और मुझे कह रहे हो?' वस्तुस्थिति में संतोष रखने से रहे, ऐसा नहीं है। उसमें भी किसी के कहने से रहे, ऐसा नहीं है। संतोष तो, जितना ज्ञान हो, उस अनुपात में अपने आप स्वाभाविक रूप से संतोष रहता ही है। संतोष करने जैसी चीज़ नहीं है। वह तो परिणाम है। जैसी आपने परीक्षा दी होगी, वैसा परिणाम आएगा। उसी तरह जितना ज्ञान होगा, परिणाम स्वरूप उतना ही संतोष रहेगा। संतोष रहे उसके लिए तो लोग इतनी सारी मेहनत करते हैं। देखो न, संडास में भी दो काम करते हैं। दाढ़ी और दोनों करते हैं! इतना अधिक लोभ होता है! यह तो सब इन्डियन पज़ल है! इसलिए इस पज़ल को
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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