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________________ जागृति, जंजाली जीवन में... (१) है। सांसारिक हिताहित का भान भी खो दिया है। सांसारिक हित किसमें है वह भी पता नहीं, तो फिर उस मोक्ष के हिताहित का भान तो कैसे हो सकता है? अभी तो, सांसारिक हित का भान किसे कहेंगे? जिसमें नैतिकता की कक्षा हो, प्रामाणिकता की कक्षा हो, जिसका लोभ नॉर्मल हो, जिसमें कपट नहीं हो, मान भी नॉर्मल हो, उसे सांसारिक हित का भान कहेंगे। वर्ना जो एनॉर्मल लोग हैं, उन्हें कहीं हित का भान रहता होगा? जो लोभांध हो चुका हो, वह न जाने किसके साथ सिर टकरा दे, वह कैसे कहा जा सकता है? जिसे सांसारिक हित का भान हो, वह मनुष्य कहलाता है। वर्ना इनका तो यदि फोटो खींचें तो लोग कहेंगे ज़रूर कि मनुष्य का फोटो है, लेकिन भीतर मनुष्य के गुण नहीं हैं। हमें इस मनुष्यजन्म में क्या काम करना है? तब कहें कि मोक्ष हेतु के लिए पर्याप्त हो उतना, उतना ही काम पूरा करना है। मोक्ष के हेतु के लिए जो साधन मिल जाएँ, उन साधनों की आराधना के लिए ही यह मनुष्य देह है। अपने हिन्दुस्तान के लिए इतना ही है। बाकी दूसरे लोग तो जो करते हैं, वही करेक्ट है। उसमें उनकी कोई भूल है ही नहीं। लोगों को तो खुद के संपूर्ण हित की खबर ही नहीं है। इन्हें तो शारीरिक हित की खबर है, भौतिक हित की खबर है। लेकिन अध्यात्मिक हित की उन्हें खबर नहीं है इसलिए भौतिक का ही कार्य करते हैं! आँखें मिची हुई थीं तभी तक सीधा था। जागते ही वापस शोर-शराबा और कलह मचा देता है! कि 'सब टेढ़ा है, ऐसा है, वैसा है, यह चाय केतली में क्यों नहीं लाए?' अरे छोड़ न यह सब, चाय पी न शांति से! फिर भी कहेगा, 'चाय फीकी क्यों है?' वह केतली सिर पर मारे तो फिर क्या होगा? जागा और आँखें खुली कि कलह करके रख देता है। ऐसा माल है या नहीं?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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