SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० आप्तवाणी-७ जन्मा नहीं है कि जिसकी खुद की संडास जाने की स्वतंत्र शक्ति हो। अरे, तू क्या कर रहा है यह? क्यों बेकार सोचता रहता है? सोचने की कोई हद होती होगी या नहीं होगी? दवाई पीने की हद होती है या नहीं होती? आप से कहा हो कि इस दवाई से रोग मिट जाएगा, लेकिन ऐसी सात-एक दवाई की शीशियाँ पीनी पड़ेंगी। तो यदि आप सभी डोज़ एक ही दिन में पी जाओ तो? डोज़ तो हिसाब से ही लेनी चाहिए या एक ही दिन में ले लेनी चाहिए? कुछ रात को बारह बजे तक ओढ़कर योजनाएँ गढ़ते रहते हैं। अरे, किसलिए योजनाएँ कर रहा है? यह सब तू तेरा खुद का हित बिगाड़ रहा है! इन गढ़ी जा चुकी योजनाओं को किसलिए बिगाड़ रहे हो? जो गढ़ी जा चुकी हैं, एक्सेप्ट हो चुकी हैं, मंजूर हो चुकी हैं, उसमें आप क्या करोगे अब? बेकार ही क्यों ऐसा करते हो? खुद अपना हित बिगाड़ रहे हो! ये तो सभी गढ़ी जा चुकी योजनाएँ हैं, इनमें आप क्यों नया गढ़ रहे हो? यह तो आप अगले जन्म का गढ़ रहे हो! किसी के सिर पर घने बाल (माथेरान) होते हैं और किसी के सिर पर वीरान यानी गंजापन आ जाता है। माथेरान अर्थात् जिसके बाल मेरे जैसे घने हों, वह माथेरानवाला गंजापन ढूँढता है कि मुझे ऐसा गंजापन क्यों नहीं आता और गंजा आदमी बाल बढ़ाने की दवाई सिर पर लगाता है, ऐसा है यह जगत्! यानी अपने लिए तो जो हुआ वही सही! गंजापन आया तो गंजापन सही और रान रहा तो रान सही। किसी का देखकर हमें क्या करना है? पहले एक-दो लोग मुझसे कहते थे कि, 'मेरे सिर पर गंज क्यों नहीं पड़ती?' मैंने कहा, 'तुझे गंज का क्या काम है?' तब कहता है, मैंने ऐसी कहावत सुनी है कि 'शायद ही कोई निर्धन गंजा।' जो गंजा है, वह शायद ही निर्धन होगा। यानी कि ये धनवान होने के लिए गंजापन लाते हैं! और गंजे लोग बाल उगाने के लिए दवाई लगाते रहते हैं! ऐसा यह घनचक्कर है जगत्। खुद के हिताहित का भान नहीं है। खुद के हिताहित का बिल्कुल भी भान नहीं
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy