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________________ आप्तवाणी श्रेणी - ७ [ १ ] जागृति, जंजाली जीवन में... संसार के सार रूप में क्या पाया? परवशता नहीं लगती ? ऐसा जीवन सब पसंद है? परवशता लगे तब क्या करते हो आप, उस घड़ी? राजा का बेटा हो और जंगल में खो जाए, तो फिर भीख भी माँगेगा ! ' अरे ! राजा का बेटा है, फिर भी भीख माँग रहा है?' तब कहे, ' और कोई चारा ही नहीं न!' ऐसा है यह संसार ! यह कैसे पसंद आए? ऐसा संसार आपको क्यों पसंद है? ऐसी कुछ भावना होती है कि अब देहाध्यास कुछ छूटे ? देहाध्यास छोड़कर मोक्ष में चले जाना है, अब इस संसार में नहीं रहना है, ऐसी भावना तो होती है न? लेकिन फिर मनुष्य वापस भूल जाता है ! मार खाता है और फिर भूल जाता है, वापस मार खाता है और भूल जाता है, यह मोह कहलाता है ! मार खाई थी उस घड़ी तय तो किया था लेकिन फिर से इस मोह ने जकड़ लिया, इसमें तो चूसने को क्या है? यह निरी गंदगी है, जूठन है !
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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