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________________ जो चिंता मिटाए, वही मोक्षमार्ग ६७ कहीं भी भरोसा ही नहीं? ७९ चिंता करने के बजाय, धर्म... ६९ इनके लिए क़ीमत किसकी? ८० पराए जंजाल कि चिंता कब... ७१ ६. भय में भी निर्भयता वाणी कठोर, लेकिन रोग... ८२ करेक्ट को क्या भय? ८८ कोशिश-प्रयत्न, पंगु अवलंबन ८३ बुद्धि का उपयोग, परिणाम... ८९ घबराहट का भय, अब तो... ८४ संयोग चुकाएँ काल, तो डर... ९३ कुदरत निरंतर सहायक, वहाँ... ८४ जहाँ निरंतर भय! वहाँ... ९४ घबराने की बजाय, स्वच्छ... ८५ क्रिया से नहीं, भाव से बीज... ९८ ...उसमें पोस्टमेन का क्या... ८६ जगत् में निर्भयता है ही कहाँ? ९९ लेकिन इतना अधिक डर... ८७ ७. कढ़ापा-अजंपा 'प्याला' करवाए कढ़ापा-अजंपा १०३ नौकर तो निमित्त, हिसाब... १०८ कढ़ापा-अजंपा, बंद होने पर... १०४ अब नौकर के साथ... १०९ कढ़ापा और अजंपा, भिन्नता... १०४ साधनों की मात्रा कितनी... १११ कढ़ापा-अजंपा का आधार १०५ कढ़ापे-अजपे के प्रति नापसंदगी...११३ क़ीमत, प्याले की या डाँटने... १०६ 'पराया' 'समझे,' तो समता बरते११५ टोकना, लेकिन किस हेतु के... १०६ नासमझी, दो नुकसान लाए! ११५ नौकर कहीं प्याले फोड़ता... १०७ प्याले फूटे, फिर भी पुण्य... ११६ ...और फिर नौकर के... १०७ बात समझने से, समाधि बरते ११६ पर्याय देखकर निकली हुई वाणी१०८ ८. सावधान जीव, अंतिम पलों में परभव की गठरियाँ समेट न! ११८ ...खुदा की ऐसी इच्छा १२८ अंत समय में स्वजनों की... १२१ मृतस्वजनों से साधो अंतर-तार १३० गति-परिणाम कैसे? १२२ व्यवहार का मतलब ही... १३४ अरे! मौत ही हो रही है १२३ मृत्यु निश्चित है फिर भी... १३८ स्मशान तक का साथ १२४ फिर भी कुदरत छुड़वा ही... १४० ...ऐसा कुछ कर १२६ आत्महत्या छुटकारा नहीं दिलवाती१४२ कल्पांत की जोखिमदारी कितनी १२६ विकल्पों की भी ज़रूरत है १४५ लौकिक, 'शॉर्ट' में पूरा करो १२७ ९. निष्क्लुशितता, ही समाधि है समझ शमन करे क्लेश परिणाम १४७ दुःख धकेलने ऐसा केसा शौक?१५७ ___37
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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