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________________ अनुक्रमणिका १. जागृति, जंजाली जीवन में... संसार के सार रूप में क्या... १ जो सुगंध फैलाए, वास्तव में... ५ जंजालों में जकड़े हुए जीवन! ३ नकलों में जाने क्या ही मान... ७ जीवन जीना सीखो ४ समझ हिताहित की... २. लक्ष्मी की चिंतना लक्ष्मी की दौड़ में, हम तो... १३ बात को समझना तो पड़ेगा न! २५ ...तो, आत्मा की भजना कब? १४ लक्ष्मी, दान देने से बढ़े अपार २६ संतोष लक्ष्मी से रहता है या... १७ पुण्य के प्रताप से पैसा २७ जिसकी मात्रा नक्की, उसकी... १८ पुण्यशाली तो किसे कहेंगे? २९ लक्ष्मी बढ़ी, तो कषाय घटे? १९ प्रिय चीज़ को खुला छोड़... ३० लक्ष्मी के ध्यान से, जोखिम... १९ संचित किया हुआ टिका है... ३० की हुई मेहनत कब काम की? २१ ऐसा तो क्यों मान बैठे हो? ३१ कमाई-नुकसान, सत्ता किसकी? २१ राजलक्ष्मी नहीं, आत्मलक्ष्मी ही हो३३ इतना पैसा! लेकिन मौत नहीं... २२ कैसी-कैसी अटकणे, मनुष्य में! ३५ जितना स्मरण, उतना वियोग २३ कमी या भराव नहीं, वही उत्तम!३६ लक्ष्मीवान की तो, सुगंधी आए!२३ नोट रहे, गिननेवाले गए! ३९ ३. उलझन में भी शांति! उलझनों में जीवन, कितनी... ४१ ...फिर परतंत्रता आती ही नहीं! ४९ उलझनों का हल, ज्ञानी के... ४२ नहीं तो, उलझनों में उलझा जीवन!४९ उलझनें कौन निकाल कर देगा? ४३ जगत् का रूप ही उलझन! ५० इसमें परवशता नहीं लगती? ४४ तो संसार के सार के रूप... ५१ जगत् में उलझनें कब मिटेंगी? ४७ ४. टालो कंटाला! कंटालारहित जीवन, संभव है? ५२ ५. चिंता से मुक्ति जगत में, चिंता की दवाई क्या..५६ मनुष्य स्वभाव चिंता मोल लेता..७३ जहाँ चिंता, वहाँ पर अनुभूति... ५८ चिंता का रूट कॉज़? इगोइज़म ७४ चिंता जाए, तभी से समाधि ६० चिंता के परिणाम क्या? ७६ बेटाइम की चिंता ६१ खुद अपने आप को पहचानो ७७ परसत्ता को पकड़े, वहाँ चिंता.. ६३ व्यथा अलग, चिंता अलग ७९ 36
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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