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________________ ३०० आप्तवाणी-७ इसके बजाय हमें आत्मा का कुछ कर लेना चाहिए। पिछले जन्म में यह नहीं किया था, इसीलिए तो यह झंझट हुआ है। जिसने अपना ज्ञान लिया है, उसकी तो बात ही अलग है न, लेकिन अपना ज्ञान नहीं मिला हो फिर भी वह भगवान के भरोसे रख देता है न! उसे क्या करना पड़ता है? 'भगवान जो करेंगे वह ठीक है' कहते हैं न? और यदि बुद्धि से नापने जाए तो कभी भी तालमेल नहीं बैठेगा। व्यापार की शोभा भी नॉर्मेलिटी से फायदा-नुकसान कुछ भी अपने क़ाबू की बात नहीं है, इसलिए नैचरल एडजस्टमेन्ट के आधार पर चलो। दस लाख कमाने के बाद एकदम पाँच लाख का नुकसान आए तो? यह तो लाख का नुकसान भी सहन नहीं कर सकता न! पूरे दिन रोना-धोना, चिंतावरीज़ करके रख देता है! अरे, पागल भी हो जाता है! अभी तक मैंने इस तरह से कितने ही पागल हुए देखे हैं! रात को बारह-एक बजे, दो बजे भी पुरुषार्थ करना है? प्रश्नकर्ता : तब तो इंसान मेन्टल हो जाएगा। दादाश्री : हाँ मेन्टल तो हो ही चुके है, भला वापस अब और कितने मेन्टल होंगे? पूरा जगत् मेन्टल होस्पिटल ही बन चुका है न! अब वापस मेन्टल नहीं होना है, क्योंकि क्या डबल मेन्टल होते हैं? अतः फायदा और नुकसान अपने हाथ की बात नहीं है। आप तो अपना काम करो और जो कुछ अपना फ़र्ज़ हो, वह पूरा करो। प्रश्नकर्ता : काम करने का कोई नॉर्मल टाइम होना चाहिए न? दादाश्री : हाँ, होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : काम करते जाना है, उसके लिए कुछ आठ या दस घंटे रखने चाहिए। फिर पंद्रह-बीस घंटे नहीं रखने चाहिए।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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