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________________ व्यापार की अड़चनें (१९) दादाश्री : चलता ही रहता है। आप नवसारी से यहाँ आए फिर भी वहाँ कमाई होती ही रहेगी। ग़ज़ब का आश्चर्य है न! दिन में भोजन करने बैठे तब भी कमाई होती ही रहती है और नुकसानवाले का नुकसान होता ही रहता है न! कैसा आश्चर्य है ! इन सब बहियों का हिसाब निकालना आता है, लेकिन इस जगत् का हिसाब निकालना आ जाए तो क्या निकलेगा? हमें जगत् का हिसाब निकालना आ चुका है ! 'यह' ज्ञान होने से पहले हमने हिसाब निकाला कि इस जगत् का सार क्या है? इसलिए फिर हमें क्यों झंझट करनी ? जिसके लिए मेहनत करते हैं वह तो सारा तैयार माल ही है, नहीं तो लाख मन मेहनत करे फिर भी वह काम की नहीं है, बल्कि नुकसान होता है। २९९ सत्ता किसके हाथ में है, उसका सार निकालो! आपने सार निकाला है क्या? प्रश्नकर्ता : 'इस' ज्ञान के बाद पता चलता है। दादाश्री : हाँ, पहले तो पता ही नहीं चल सकता था न? उलझा हुआ सबकुछ, सभी बहीखाते ही उलझे हुए थे। इसमें किसी व्यक्ति की मति से यह हिसाब निकल सके, ऐसा नहीं है। बुद्धि से यह हिसाब निकले, ऐसा नहीं है। प्रश्नकर्ता : आप जो कह रहे हैं, ये सभी बातें पहले सुनी ही नहीं । दादाश्री : सुनी ही नहीं न! ऐसी बातें कहीं भी होती ही नहीं। ये सभी बातें अपूर्व हैं। पहले सुना हुआ नहीं, पढ़ा हुआ नहीं, यह बिल्कुल नया ही तरीका है ! और तभी तो हल आ जाता है, नहीं तो हल कैसे आता ? हम मेहनत करे, चारों तरफ का देखते रहे फिर भी कुछ नहीं मिले, तो हमें समझ जाना चाहिए कि हमारे संयोग सीधे नहीं है। अब वहाँ पर अधिक ज़ोर लगाएँगे तो बल्कि नुकसान होगा,
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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