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________________ आप्तवाणी-७ ज़रा दबाकर सँकरा करे न तब मान का भैंसा अधिक मोटा हो जाता है! इससे क्या फायदा हुआ? मान का भैंसा बढ़ा। लोग तो एक भैंसे को दबाते हैं न? लेकिन ऐसा नहीं करना है। क्रोध क्या है? उसे पहचानने की ज़रूरत है । २८४ क्रोध खुद ही अहंकार है । अब उसकी जाँच करनी चाहिए । जाँच करो कि वह किस प्रकार से अहंकार है । उसकी जाँच करें, तब पकड़ में आता है कि क्रोध अहंकार है । यह क्रोध क्यों उत्पन्न हुआ? तब कहे कि, 'इस बहन ने कप - 1 - प्लेट फोड़ दिए इसलिए क्रोध उत्पन्न हुआ।' अब कप-प्लेट फोड़ डाले, उसमें हमें क्या आपत्ति है? तब कहे कि, 'हमारे घर में नुकसान हुआ।' और नुकसान हुआ तो क्या उसे डाँट दें फिर? लेकिन अहंकार करना, डाँटना, वगैरह को अगर बारीकी से सोचा जाए तो सोचने से ही वह सारा अहंकार धुल जाएगा, ऐसा है । अब इन कप का टूटना, वह निवार्य है या अनिवार्य है? निवार्य संयोग होते हैं या नहीं होते ? नौकर को सेठ डाँटता है कि, 'अरे, कप-प्लेट क्यों फोड़ डाले? तेरे हाथ टूटे हुए थे क्या? और तेरा ऐसा था और वैसा था।' यदि अनिवार्य हो तो क्या उसे डाँट सकते हैं? जमाई के हाथ से कप-प्लेट फूट गए हों तो वहाँ कुछ भी नहीं कहते ! क्योंकि वह सुपीरियर है, वहाँ चुप ! अगर इन्फीरियर हो वहाँ छिट् छिट् करता है! ये सब इगोइज़म हैं । सुपीरियर के सामने क्या सभी चुप नहीं हो जाते? इन दादा के हाथ से कुछ फूट जाए तो किसी के मन में कुछ आता ही नहीं और नौकर के हाथ से फूट जाए तो? इस जगत् ने न्याय कभी देखा ही नहीं । नासमझी के कारण यह सब है। यदि समझदार बुद्धि होती न, तब भी बहुत हो चुका ! बुद्धि यदि विकसित हो, समझवाली हो तो कहीं भी कोई झगड़ा होगा ही नहीं। अब झगड़ा करने से क्या कप-प्लेट जुड़ जाते हैं ? सिर्फ संतोष मिलता है, उतना ही न? बल्कि कलह हो जाती है,
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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