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________________ २७० आप्तवाणी-७ है। और सिर्फ हिंसकभाव नहीं है, सिर्फ तंत है तब भी पुण्य बंधता है। कैसी सूक्ष्मता से भगवान ने ढूंढ निकाला है न! यह वीकनेस है या पर्सनालिटी? प्रश्नकर्ता : इंसान को तो क्रोध कदम-कदम पर आ ही जाता है, तो क्रोध जल्दी नहीं आए, उसके लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : हर एक व्यक्ति को क्रोध आता होगा? प्रश्नकर्ता : हम सही हों, फिर भी कोई अपने लिए गलत कर दे, तब फिर अंदर उस पर क्रोध आता है। दादाश्री : हाँ, लेकिन आप सही होंगे तब न? आप सही हो क्या? आप सही हो, ऐसा आपको पता चला? प्रश्नकर्ता : हमें अपना आत्मा कहता है न, कि हम सही है दादाश्री : यह तो आप ही जज, आप ही वकील और आप ही अभियुक्त, तब फिर आप सच्चे ही हुए न? आप फिर झूठे बनोगे ही नहीं न? सामनेवाले को भी ऐसा ही लगता है कि मैं ही सच्चा हूँ। आपको समझ में आता है? क्रोध सिर्फ आपको ही आता है या किसी और को भी आता है? प्रश्नकर्ता : क्रोध तो सभी को आ जाता है न! दादाश्री : लेकिन इस भाई से पूछो, वे तो मना कर रहे प्रश्नकर्ता : सत्संग में आने के बाद फिर क्रोध नहीं आता दादाश्री : ऐसा? उन्होंने क्या दवाई पी होगी? द्वेष का मूल चला जाए, ऐसी दवाई पी है।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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