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________________ [१८] क्रोध की निर्बलता के सामने वीतरागों की सूक्ष्मता तो देखो लोग क्या कहते हैं कि यह बाप अपने बेटे पर इतना गुस्सा हो गया है न, इसलिए यह बाप नालायक आदमी है, और कुदरत के वहाँ इसका क्या न्याय होता होगा? 'इस बाप के हिस्से में पुण्य रखो।' क्रोध कर रहा है फिर भी पुण्य में आता है? हाँ, क्योंकि बेटे के हित के लिए खुद अपने आप पर संघर्षण लेता है न! बेटे के सुख के लिए खुद ने संघर्षण उठाया, इसलिए इसे पुण्य दो! वर्ना किसी भी प्रकार का क्रोध पाप का ही बंधन करता है, लेकिन सिर्फ यही बेटे के या मित्र के सुख के लिए जो क्रोध करते हो, वह खुद का जलाकर उसके सुख के लिए करते हो, तो उसका पुण्य बँधता है। फिर भी यहाँ तो लोग उसे अपयश ही देते रहते हैं! लेकिन ईश्वर के घर पर सही कानून है या नहीं? खुद के बेटे पर या बेटी पर क्रोध करता है न, वह खूब ज़बरदस्त क्रोध करे, लेकिन उसमें हिंसकभाव नहीं होता, बाकी सभी जगह हिंसकभाव होता है। फिर भी उसमें तंत रहा करता है, क्योंकि जैसे ही वह बेटे को देखता है, तो अंदर फिर से क्लेश होने लगता है। उसका वह तंत रहा करता है। भगवान ने तो क्या कहा है कि बेटी पर, बेटे पर गुस्सा करने के बावजूद भी उसे पुण्य बँधता है, क्योंकि भीतर हिंसकभाव नहीं है। साथ ही साथ जब तंत नहीं रहता तब क्या होता है? मोक्ष होता है। यदि क्रोध में हिंसकभाव और तंत, ये दो नहीं रहें तो मोक्ष होता
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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