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________________ २५४ आप्तवाणी-७ के सारे हिसाब चुक रहे हैं। उसमें वह काटनेवाला तो अभी मौज कर रहा होगा, लेकिन आप आज पकड़ में आए हो। प्रश्नकर्ता : कोई अपने पास से पच्चीस हज़ार रुपये ले जाए और वापस नहीं दे, तो वह भी हम पूर्वजन्म का अपना ऋण ही चुका रहे होंगे न? दादाश्री : सब हिसाब ही है, इसलिए वरीज़ मत करना। वह सामने मिले तब भी उस पर चिढ़ना मत, नहीं तो एक तो रुपये गए और ऊपर से उसके साथ कर्म बँधेगे। प्रश्नकर्ता : 'वह भले ही ले गया,' ऐसे करें? दादाश्री : फिर ऐसा मत बोलना कि 'भले ही ले गया', वहाँ पर मौन रहना। 'वह भले ही ले गया' ऐसा बोलेंगे, तब भी गुनाह कहलाएगा। अंदर समझ जाना है कि अपनी भूल का परिणाम है यह, मुँह पर कुछ भी मत बोलना। नहीं तो वह व्यक्ति फिर चढ़ बैठेगा! मुँह पर तो ऐसा ही कहना कि, 'भाई, आपको ठीक लगे उतने तो कुछ वापस करो।' इतना कहना। अंदर समझना कि मिलें तो ठीक है और नहीं मिलें तो कुछ नहीं, लेकिन मुँह से कहना तो चाहिए। बाकी बगैर हिसाब के तो मिलेंगे ही नहीं न! किसी और को नहीं दिए और इसी को क्यों दिए? यानी हिसाब है। हिसाब के बगैर तो वह एक बार भी नहीं मिलेगा। हमें पूरा जगत् निर्दोष दिखता है। दोषित कोई है ही नहीं, पूरा जगत् ऐसा ही दिखता है। यदि कोई दोषित दिखता है, तो अभी वह अपनी भूल है। कभी न कभी तो निर्दोष देखना पड़ेगा न? संक्षेप में इतना समझ जाओ न कि, अपने हिसाब की वजह से ही है यह सब, तो भी सब बहुत काम आएगा। आत्मा के पास जेब नहीं होती। यदि आप आत्मा हो तो
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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