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________________ नहीं डाँटते? वहाँ पर कैसे चुप रहते हैं ! एक तो प्याले गए और दूसरा क्रोध किया, ये दो नुकसान कैसे पुसाएँगे? ऊपर से सामनेवाले के साथ जन्मोजन्म के लिए बैर बँधा, वह फायदा! इस प्रकार 'ज्ञानीपुरुष' ने क्रोध, वह होने के कारण, और उसका उपाय, सब तरफ से देखकर हमारे समक्ष प्रस्तुत किए हैं! क्रोध नहीं हो, उसके लिए 'ज्ञानीपुरुष' सम्यक उपाय समझाते हैं कि खुद की भूल को ज्ञानी के सत्संग में समझ लो तो फिर क्रोध नहीं होगा। 'क्रोध बंद करो, बंद करो' ऐसा उपदेश कितने ही काल से मिल रहा है, जबकि विज्ञान क्या कहता है कि क्रोध, वह परिणाम है, परिणाम किस तरह बंद किया जा सकता है? यह परिणाम किस आधार पर आता है, वह जानना है। खुद क्रोध की संपूर्ण स्टडी कर लेनी है। कहाँ-कहाँ पर क्रोध आता है, कहाँ-कहाँ नहीं आता, कुछ लोग हमारा लाख भला करें फिर भी वहाँ पर क्रोध आए बगैर नहीं रहता और कोई लाख उल्टा करे तो भी वहाँ पर क्रोध नहीं आता। उसका क्या कारण है? जैसी जिसके लिए ग्रंथि बन गई है, वैसी ही फूटे बगैर नहीं रहती। तो वहाँ पर क्या करना चाहिए? ज्ञानी चाबी देते हैं कि उस व्यक्ति के साथ जितने समय तक क्रोध होना है उतना होगा ही, लेकिन अब नये सिरे से उसके लिए मन नहीं बिगड़ने देना चाहिए। वहाँ खुद के ही कर्मों के उदय को देखकर, सामनेवाले को निर्दोष देखते रहना चाहिए। जब मन सुधर जाएगा, तब उस पर क्रोध नहीं होगा। मात्र पहले के असर देकर फिर हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। जब दूसरों के दोष देखने बंद होंगे, तभी मनचाहा परिणाम आएगा। परिणाम को ज़रा भी हिलाए बिना कारण का नाश करने का मूलभूत मार्ग इतनी बारीकी से ज्ञानी के अलावा और कौन बता सकता है? ज्ञानी हममें जागृति ला दें, उसके बाद ही यह सब सूक्ष्मता से दिखता है और उसके बाद वह दूर होता है। १९. व्यापार की अड़चनें जो अड़चनों को प्रिय बनाए वह प्रगति करता है और अड़चन को 28
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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