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________________ २४२ आप्तवाणी-७ है। कौन से शहर जाना है, उसका ठिकाना नहीं और कौन से शहर में उतरना है, उसका भी ठिकाना नहीं है। रास्ते में कहाँ पर चाय-नाश्ता करना है, उसका भी ठिकाना नहीं है। बस, दौड़ता ही रहता है। इसलिए सबकुछ उलझ गया है। हेतु निश्चित करने के बाद ही सारे कार्य करने चाहिए। लक्ष्मी तो बाइ प्रोडक्शन है, उसका प्रोडक्शन नहीं हो सकता। उसका प्रोडक्शन हो सकता तो यदि हम कारखाना बनाते तो प्रोडक्शन में अंदर से पैसा मिलता, लेकिन नहीं, लक्ष्मी तो बाइ प्रोडक्शन है। पूरे जगत् को लक्ष्मी की ज़रूरत है। तो फिर हम ऐसी क्या मेहनत करें कि अपने पास पैसा आए, इसे समझने की ज़रूरत है। लक्ष्मी, वह बाइ प्रोडक्शन है, इसलिए अपने आप प्रोडक्शन में से आएगी, सहजभाव से आए ऐसी है। जबकि लोगों ने लक्ष्मी के कारखाने बना दिए, प्रोडक्शन ही उसे बना दिया। हमें तो सिर्फ हेतु ही बदलना है, और कुछ नहीं करना है। पंप के इन्जन का एक पट्टा उधर लगा दें तो पानी निकलता है और पट्टा इस तरफ लगा दें तो डांगर में से चावल निकलते हैं। यानी सिर्फ पट्टा देने में ही फर्क है। हेतु निश्चित करना है और वह हेतु फिर हमारे लक्ष्य में रहना चाहिए। बस, और कुछ भी नहीं। लक्ष्मी लक्ष्य में रहनी ही नहीं चाहिए।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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