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________________ दुःख मिटाने के साधन (१५) है न? २३७ दादाश्री : आपने कोई स्वार्थी इंसान देखा है? प्रश्नकर्ता : सभी को खुद के लिए स्वार्थ तो होता ही न ? दादाश्री : नहीं, वह स्वार्थ नहीं है, वह तो परार्थ है। परार्थ को ही लोग स्वार्थ कहते हैं। स्वार्थी तो मेरे जैसा शायद ही कोई होता है, जो खुद का स्वार्थ साधकर चले जाते हैं। यह तो परार्थ है । परायों के लिए जीते हैं, मेहनत भी परायों के लिए करते हैं। यह जो स्वार्थ कहलाता है, वह भ्रांति की भाषा में कहलाता है। इसकी तो समझ ही नहीं, इसलिए फॉरिन डिपार्टमेन्ट को ही होम कहते हैं। फॉरिन को होम कहेंगे तो क्या फायदा होगा? अतः ये तो परार्थ को ही स्वार्थ मानते हैं और परायों के लिए ही सारे जोखिम मोल लेते हैं । हमें भ्रांति से दिखता है कि यह वाइफ मेरी है, ये बच्चे मेरे हैं, और यह सब जो दिखाई दे रहा है, वह सब भ्रांति से मेरा लग रहा है। वास्तव में खुद के नहीं हैं। और वह खुद का नहीं है, ऐसा भी नहीं। वह खुद का है लेकिन वह ड्रामेटिक होना चाहिए। उसे आप ड्रामेटिक रखते नहीं हो न? प्रश्नकर्ता : यों तो दुनिया के मंच पर सभी एक्टर ही हैं दादाश्री : एक्टर तो हैं, लेकिन सब उलझे हुए ही हैं न ! यह उलझन तो उसीकी है न! जिसे स्वार्थ मानते हैं, वह स्वार्थ नहीं है। स्वार्थ का मतलब तो 'स्व' का अर्थ करना । होम डिपार्टमेन्ट में रहकर, 'स्व' को 'स्व' माने तो वह होम डिपार्टमेन्ट का लाभ उठा सकता है। वर्ना यह तो फॉरिन को होम मानता है, वह स्वार्थ नहीं है, परार्थ है । I जगत् के लोग तो एक्सेस परिणाम को आग्रह कहते हैं संसार में ज़रूरत के मुताबिक परिणाम को आग्रह नहीं कहते, उसी प्रकार से जो ज़रूरत के मुताबिक हो, उसे स्वार्थ नहीं कहते। माँ
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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