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________________ दुःख मिटाने के साधन (१५) २३३ दादाश्री : हाँ, लेकिन हर एक व्यक्ति को ऐसा नहीं लगता न? जो खुद सुखी हो, खुद हर प्रकार से सैटिसफैक्शन में हो, वही दूसरों का कार्य कर सकता है, यों थोड़ा-बहुत कार्य करते हैं। लेकिन जो खुद स्थायी रूप से सुखी हों, वे सभी प्रकार से लोगों के लिए सुख का कार्य कर सकते हैं। प्रश्नकर्ता : अभी की राजनीतिक परिस्थिति में जिस प्रकार से सबकुछ हो रहा है, उसे देखकर दुःख तो होगा न? दादाश्री : वहाँ जो होता है उसका और हमारा क्या लेनादेना? हमारी जेब कट जाए तो कुछ दुःख होता है या नहीं होता, इतना ही देखना है। हमें गाड़ी में किसी ने गाली दी और धक्का मारा, उस घड़ी बहुत दुःख होता है या नहीं, वह देखना है। यानी वहाँ जो भी होना हो वह हो, उसके आप मालिक नहीं हो। उसके लिए तो अपनी भावना होनी चाहिए कि जगत् ऐसा नहीं होना चाहिए। सुखी ही हो, ऐसी भावना होनी चाहिए। सामूहिक भावना होनी चाहिए। लेकिन भगवान ने क्या कहा है कि भावना किसे करनी है? जिसका खुद का दुःख मिट गया है, उसे फिर बाहर का वह काम करना बाकी रहा। पहले खुद का दु:ख सर्वस्व प्रकार से मिट जाए, कोई गाली दे तो हम पर असर नहीं हो, जेब कटे तो असर नहीं हो, ऐसा यदि हमें हो गया हो तो वह सब दवाई सही ही है, लेकिन वह कुछ हद तक फायदा करती है और फिर नुकसान भी करती है ऐसी लाभ-अलाभवाली है। सिर्फ लाभवाली दवाई तो कोई-कोई ही होती है। लोग ऐसे नहीं हैं कि जनसेवा करें। यह तो अंदर ही अंदर कीर्ति का लोभ है, नाम का लोभ है, मान का लोभ है, तरहतरह के लोभ छुपे हुए हैं, वे ही करवाते हैं। जनसेवा करनेवाले लोग तो कैसे होते हैं? वे अपरिग्रही पुरुष होते हैं। ये तो सब नाम कमाने के लिए, 'धीरे-धीरे कभी मंत्री बन जाएँगे,' ऐसे सोचकर जनसेवा करते हैं। अंदर चोर नियत होती है इसीलिए बाहर की आफतें,
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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