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________________ आप्तवाणी-७ है और परमात्मा के साथ का संबंध सच्चा संबंध है, लेकिन जब तक यह संबंध है तब तक परमात्मा के साथ संबंध नहीं है। और परमात्मा से संबंध हो जाने के बाद यह संबंध नहीं रहेगा। आपको दोनों ही संबंध रखने हैं एक साथ ? दोनों संबंध रखने हों तो परमात्मा की भक्ति करो, लेकिन पहचानकर भक्ति करो नहीं तो आप भक्त और वे भगवान, इस तरह ' तू ही, तू ही ' करते रहोगे तो कुछ नहीं होगा । २१० प्रश्नकर्ता : भगवान को सबकुछ समर्पण करके रहना, वह सही, और सुखी होने का मार्ग है न? दादाश्री : हाँ, लेकिन भगवान को समर्पण करके कोई रहा ही नहीं न इस दुनिया में ! मुँह पर बोलते ज़रूर हैं कि भगवान को समर्पण! लेकिन सभी ने पत्नी को समर्पण किया हुआ है। व्यवहार में बोलते हैं कि भगवान को समर्पण किया है, भक्ति करते हैं तब भगवान को समर्पण बोलते हैं, लेकिन यदि भगवान को समर्पण कर लिया हो तो फिर उसे दु:ख ही क्या रहेगा? ... तो अहंकार ठिकाने रहेगा प्रश्नकर्ता : इच्छाएँ पूरी हों, उसके लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : ऐसा है न, यह कलियुग है, इसमें जो इच्छाएँ होती हैं, यदि उनकी प्राप्ति हो जाए तो अपना अहंकार बढ़ जाएगा और फिर गाड़ी उल्टी चलेगी । इसलिए इस कलियुग में तो हमेशा उसे ठोकर लगे न, तभी अच्छा है। यानी हर एक युग में यह वाक्य अलग-अलग प्रकार से होता है। अतः इस युग के संदर्भ में यह वाक्य इस तरह कहा जाएगा। अभी यदि इच्छा के अनुसार मिल जाएगा तो उसका अहंकार बढ़ जाएगा । मिलता है सब पुण्य के हिसाब से और बढ़ता है क्या? अहंकार, 'मैं हूँ ।' अतः ये जितनी भी इच्छाएँ होती हैं न, यदि उस अनुसार नहीं होगा तब उसका अहंकार ठिकाने रहेगा और बात को समझने लगेगा। जब
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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