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________________ भोगवटा, लक्ष्मी का (१३) २०३ से लोभी के सामने गलत दिखे। समझ में आया न कि लोभी कैसा होता है? प्रश्नकर्ता : लोभी खुद के सुख में ही रहा करता है। दादाश्री : वह समझता है कि अभी यह थककर चला जाएगा लेकिन अपने को तो ये रुपये मिल गए न! ऐसी बात लोग समझ जाएँ तो सुखी हो जाएँगे न! ___ यह कुदरत हमारी हेल्प में है, यह बात पक्की है। इसलिए मैंने कह रखा है कि २००५ में हिन्दुस्तान वर्ल्ड का केन्द्र बन जाएगा। अतः यह बात बहुत समझने जैसी है। लोग दु:खी क्यों थे, वह मैंने ढूँढ निकाला, और अभी गाँववाले किसलिए दुःखी हैं? अभी तक वे निंदा के ही धंधे में पड़े हुए हैं। आज के ये जीव तो और कुछ नहीं हो तो रेडियो-टी.वी. की मस्ती में ही रहते हैं! ये लोग किसी की निंदा में नहीं पड़ते। ये तो टी.वी. देखते हैं, और भी कुछ देखते हैं, फलाना देखते हैं, वह भी खुद की आँखें बिगाड़कर। लोगों की आँखें थोड़े ही बिगाड़ते हैं? खुद की ही ज़िम्मेदारी है न! अपना पूरा देश निंदा से, भयंकर निंदा से खत्म हो गया था, शास्त्रकारों ने नियम बताया है कि अवश्य टीका करना। टीका-टिप्पणी नहीं करोगे तो फिर लोग सुधरेंगे नहीं। उस टीका का इग्ज़ैगरेशन हो गया और उससे फिर निंदा आ गई! जो विटामिन था, उसी का नाश कर दिया! मैं तो पोज़िटिव करना चाहता हूँ, नेगेटिव सेन्स लाना ही नहीं चाहता। यदि वह अच्छा हो न, तो उसे अच्छे में पुष्टि दे देता हूँ। यानी अच्छा इतना अधिक प्रकाशमान हो जाए, इतनी अधिक जगह रोकता जाए कि नेगेटिव खत्म ही हो जाए। इस जगत् में अभी तक नेगेटिव ही टकराव करवाता रहा है! लक्ष्मी आने के बाद भी सुख नहीं है। यदि अंतरदाह रहे तो वह सब पापानुबंधी
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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