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________________ २०२ आप्तवाणी 6 ू - दादाश्री : लोभी यानी सिर्फ पैसे का ही लोभ हो, ऐसा नहीं । सुख का भी लोभ होता है। प्रश्नकर्ता : मान का लोभ होता है? है? दादाश्री : मान का लोभ नहीं माना जाता, सुख का लोभ कहा जाता है। मान के लोभ में तो फिर निंदा घुस जाती है। प्रश्नकर्ता : तो इस मुंबई में लोग मान के लोभ में नहीं दादाश्री : नहीं, वास्तव में यह मान का लोभ नहीं माना जाता, सुख का लोभ होता है। मान का लोभ कब कहलाता है कि दूसरों की निंदा करने का उसे समय मिले। मुंबई शहर में लोगों से पूछकर आओ कि 'आपको दूसरों की निंदा करने का समय है?' तब कहेंगे, 'नहीं।' यानी घड़ीभर का भी खाली समय इन लोगों के पास नहीं होता। और वहाँ वढवाण ( गुजरात का एक गाँव) में जाएँ तो ? प्रश्नकर्ता : वहाँ सभी जगह यही होता है । दादाश्री : फिर भी हमने क्या कहा है कि, इस हिन्दुस्तान में निंदा और तिरस्कार कम होने लगे हैं और लोभ बढ़ा है। सुख का लोभ लगा है, इसलिए हिन्दुस्तान अच्छा बनेगा। इस लक्षण पर से मैं समझ जाता हूँ। भले ही ज़रा मोह बढ़ेगा, लेकिन दूसरा सब निंदा, तिरस्कार वगैरह कम होंगे न? जो लोभी होता है और उसके पास यदि हमारे पैसे फँसे हुए हों और हम उसे गालियाँ दें, तब वह हँसता है । 'अरे, मैं गालियाँ दे रहा हूँ और तू हँस रहा है?' तब फिर अड़ोसी - पड़ोसी और रास्ते चलते लोग हमें क्या कहेंगे कि, 'यह चिढ़ रहा है, इसलिए यही आदमी नालायक है।' इसे देखो न बेचारा हँस रहा है, और वह बल्कि अपने सिर पड़ेगा। रुपये गये अपने और ऊपर
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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