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________________ १७६ आप्तवाणी-७ दादाश्री : आपका यह कहना ठीक है कि प्रतिक्रमण से नये पाप नहीं बंधेगे लेकिन पुराने पाप तो भुगतने ही पड़ेंगे। अब वह भोगवटा (सुख या दुःख का असर) कम ज़रूर होगा, उसके लिए मैंने फिर रास्ता बताया है कि तीन मंत्र एक साथ बोलना। उससे भी भोगवटा का फल हल्का हो जाएगा। किसी आदमी के सिर पर डेढ़ मन का वज़न हो और बेचारा ऐसे तंग आ गया हो, लेकिन उसे एकदम से ऐसे कोई चीज़ दिख जाए और दृष्टि वहाँ पड़े तो वह अपना दुःख भूल जाएगा। वज़न हैं फिर भी उसे दु:ख कम लगेगा। वैसे ही, ये जो त्रिमंत्र हैं न, उन्हें बोलने से वह वज़न लगेगा ही नहीं। यानी ये मंत्र हेल्पिंग चीज़ हैं। आप किसी दिन त्रिमंत्र बोले थे? एक ही दिन त्रिमंत्र बोले थे? तो ज़रा ज़्यादा बोलो न, ताकि सब हल्का हो जाए और आपको जो भय लग रहा होगा, वह भी बंद हो जाएगा। किसी टिजन लगेगा ही नही हो, ये जो त्रिम वज़न हैं फिर पुण्य का उदय क्या काम करता है? सबकुछ खुद की इच्छा अनुसार होने देता है। पाप का उदय क्या ऐसा होने देता है? सबकुछ अपनी इच्छा से उल्टा कर देता है। नहीं हो सकता माइनस पाप का कभी प्रश्नकर्ता : यदि मनुष्य पुण्य के रास्ते पर जाए तो फिर पाप क्यों आता है? दादाश्री : वह तो हमेशा से नियम ऐसा ही है न कि अगर आप कोई भी कार्य करते हो, तो अगर वह पुण्य का कार्य हो तो आपके सौ रुपये जमा होते हैं और पाप का कार्य हो तो भले ही थोड़ा सा, एक ही रुपये का हो, फिर भी वह आपके खाते में उधार हो जाता है लेकिन उस सौ में से एक भी कम नहीं होता। ऐसे यदि कम हो जाता तो कोई पाप लगता ही नहीं। अतः दोनों अलग-अलग रहते हैं और दोनों के फल भी अलगअलग आते हैं। जब पाप का फल आए तब कड़वा लगता है।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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