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________________ १७४ आप्तवाणी-७ ऐसे तोड़ते रहते हैं, यानी कि बहुत नुकसान करते हैं। जीवमात्र को किसी भी प्रकार का नुकसान पहुँचाने से पाप बँधते हैं और किसी भी जीव को किसी भी प्रकार से सुख देने पर पुण्य बँधते हैं। आप बगीचे में पानी छिड़कते हो तो जीवों को सुख होता है या दुःख? वह जो सुख देते हो उससे पुण्य बँधता है। किसी भी जीव को थोड़ा भी त्रास दो, उससे पाप बँधता है। बस, इतना ही समझना है। पूरा जगत् भगवान स्वरूप ही है। अब, ये जो सब दुश्मन और मित्र दिखते हैं, वह सब भ्रांति है। वह भ्रांतिज्ञान दूर हो जाए तो सभी तरफ शुद्धात्मा ही है। बाइ रिलेटिव व्यू पोइन्ट वह गधा है और बाइ रियल व्यू पोइन्ट वह शुद्धात्मा है। अतः यदि किसी भी जीव को किंचित्मात्र सुख या दुःख पहुँचाया तो उससे हम पर पुण्य या पाप का असर होता है और फिर वह असर हमें भोगना पड़ता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन मैंने पाप किया या पुण्य किया वैसा ज्ञान नहीं हो, फिर भी पाप-पुण्य बंधेगे? उसे ज्ञान ही नहीं है कि यह मैंने पाप किया और यह पुण्य किया, तो उस पर इसका बिल्कुल भी असर होगा ही नहीं न? दादाश्री : कुदरत का नियम ऐसा है कि आपको ज्ञान हो या नहीं हो, फिर भी उसका असर हुए बगैर तो रहता ही नहीं है। यदि इस पेड़ को काटा और आप इसमें कोई पाप या पुण्य नहीं समझते हो, लेकिन फिर भी पेड़ को दुःख तो हुआ ही न? इसलिए आपको पाप लगा। आप चीनी की थैली लेकर जा रहे हों और थैली में छेद हो और उसमें से चीनी बिखर रही हो, तो वह चीनी किसी के काम आएगी या नहीं आएगी? नीचे चींटियाँ होती हैं, वे चीनी ले जाती हैं। अब इसे ऐसा कहा जाएगा कि आपने दान किया। भले ही बिना समझे, लेकिन दान हो रहा है न? आपकी जानकारी में नहीं है, फिर भी दान होता रहता है
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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