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________________ १७२ आप्तवाणी-७ भी शाता भोगेगा और रुपये होंगे फिर भी अशाता भोगेगा।' यानी जो कुछ भी शाता या अशाता वेदनीय भोगता है, वह रुपयों पर आधारित नहीं है। अभी यदि अपनी थोड़ी आमदनी हो, बिल्कुल शांति हो, कोई झंझट नहीं हो, तब हम कहेंगे कि, 'चलो, भगवान के दर्शन कर आएँ!' और ये जो पैसे कमाने में रह गए, वे तो ग्यारह लाख रुपये कमाए उसका हर्ज नहीं है, लेकिन अभी पचास हज़ार का नुकसान हो जाए तो अशाता वेदनीय खड़ी हो जाती है! 'अरे, ग्यारह लाख में से पचास हजार माइनस कर ले न!' तब वह कहेगा कि, 'नहीं, उससे तो रकम कम हो जाएगी न!' अरे, त रकम किसे कहता है? कहाँ से आई यह रकम? वह तो ज़िम्मेदारीवाली रकम थी, इसलिए जब कम हो जाए तब शोर मत मचाना। यह तो, जब रकम बढ़े तब तू खुश हो जाता है और कम हो जाए तब? अरे, पूँजी तो 'भीतर' है, क्यों हार्ट फेल करके उस पूँजी को पूरा खो देना चाहता है? हार्ट फेल करे तो पूँजी पूरी खत्म हो जाएगी या नहीं? प्रश्नकर्ता : हो जाएगी। दादाश्री : तो यह सब किसलिए? तब वह कहता है कि, 'लेकिन मेरे लिए तो वह पैसों की पूँजी क़ीमती है!' अरे, आपको भीतरवाली पूँजी की ज़रूरत नहीं है? दस लाख रुपये पिता ने बेटे को देकर पिता कहें कि, 'अब मैं आध्यात्मिक जीवन जीऊँगा!' तो अब वह बेटा हमेशा शराब में, मांसाहार में, शेयरबाज़ार में, सभी में वह पैसा खो देता है। क्योंकि जो पैसे गलत रास्ते इकट्ठे हुए हैं, वे खुद के पास नहीं रहते। आज तो सही धन भी, सही मेहनत का धन भी नहीं रह पाता, तो गलत धन कैसे रहेगा? अर्थात् पुण्यवाले धन की आवश्यकता होगी। जिसमें अप्रमाणिकता नहीं हो, दानत साफ हो, वैसा धन होगा तो वह सुख देगा। नहीं तो, अभी तो दूषमकाल का धन, वह भी पुण्य का ही कहलाता है, लेकिन पापानुबंधी
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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