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________________ [११] पाप-पुण्य की परिभाषा सही धन तो सुख देता है यह तो पूरण-गलन है, उसमें जब पूरण (चार्ज होना, भरना) हो, तब हँसने जैसा नहीं है और गलन (डिस्चार्ज होना, खाली होना) हो, तब रोने जैसा नहीं। यदि पूरण होगा और हँसने की आदत पड़ गई होगी तो कोई भी मूर्ख बना देगा। जब दुःख का पूरण होता है, तब रोता क्यों है? पूरण में यदि तुझे हँसना हो तो हँस। पूरण अर्थात् सुख का पूरण होता है तब भी हँस और दुःख का पूरण होता है तब भी हँस। लेकिन इनकी तो भाषा ही अलग है न! पसंद और नापसंद, दोनों रखते हैं न? सुबह जो नापसंद हो, उसी को शाम को पसंद कर देता है। सुबह कहेगा, 'तू यहाँ से चली जा।' और शाम को उसे कहेगा कि, 'तेरे बिना मुझे अच्छा नहीं लगेगा।' यानी भाषा ही अनाड़ी लगती है न! जगत् का नियम ही ऐसा है कि जो पूरण होता है, उसका गलन हुए बगैर रहता नहीं। यदि सभी लोग पैसे सिर्फ इकट्ठे कर रहे होते तो मुंबई में कोई भी व्यक्ति कह सकता था कि, 'मैं सबसे अधिक धनवान हूँ।' लेकिन ऐसी संतुष्टि की बात कोई कहता ही नहीं। क्योंकि नियम ही नहीं है ऐसा! कुदरत क्या कहती है? 'उसने कितने रुपये खर्च किए, वह हमारे यहाँ नहीं देखा जाता। वह तो वेदनीय क्या भोगा, शाता या अशाता, उतना ही हमारे यहाँ देखा जाता है। रुपये नहीं होंगे तो
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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