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________________ सावधान जीव, अंतिम पलों में (८) १३५ तरफ का बोलते हैं। यदि सोएँ, तो कहेंगे कि, 'ढोंगरा (आलसी) की तरह सो रहा है।' और भागदौड़ करें तब कहेंगे कि, 'पूरे दिन भागदौड़ करता रहता है, कुत्ते की तरह भटकता रहता है।' तब हमें किस ओर रहना? यानी समाज की बात पर इतना अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए, व्यवहारिक रूप से ध्यान देना चाहिए। अपने लिए जितना हितकारी हो उतनी बात पर ध्यान देना चाहिए, दूसरी सभी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। इस तरह ध्यान देने लगें तब तो अंत ही नहीं आएगा न? समाज के मन में ऐसा होता है कि यह पत्थर जैसे हृदय का है, तो आप बाथरूम में जाकर आँख में पानी चुपड़कर आ जाना। क्योंकि यह तो लौकिक है। लोग भी नहीं कहते कि, 'लौकिक में आना'? लौकिक अर्थात् बनावटी। लौकिक का अर्थ ही बनावटी, झूठा! रिश्तेदार छाती कूटते हैं, उसी तरह यह भी छाती कूटता है, लेकिन छाती को तोड़ नहीं डालता। ऐसे हाथ पर हाथ ठोकता है। देखो वास्तव में लौकिक करता है न? और सब अपना-अपना याद करके रोते हैं। किसी का छोटा भाई मर गया वह उसे याद करता है, स्त्री अपने पति को याद करके रोती है! अब इस नासमझी का अंत कब आएगा? ये गाय-भैंसें कहीं रोती नहीं है। उनके भी बेटे मर जाते हैं, बेटियाँ मर जाती हैं लेकिन वे रोते नहीं न! लेकिन ये तो सुधर गए हैं, इसलिए ज्यादा रोते हैं। गाय-भैंसों में कहीं रोनाधोना होता है कि, 'मेरी बेटी मर गई या मेरा बेटा मर गया?' मेरा कहना है कि किसी के मरने के बाद यदि आज आप रोओगे, तो शर्त रखो कि, 'भाई, मैं तीन सालों तक रोता ही रहूँगा; उसके बाद रोना बंद करूँगा।' ऐसी कोई शर्त रखो। 'एग्रीमेन्ट' करो। जब स्त्रियाँ भी रोने आएँ तो उन्हें कहते हैं कि, 'शर्त लगाकर फिर रोओ कि तीन सालों तक रोएँगे।' लेकिन यह तो पंद्रह दिनों बाद कुछ भी नहीं! और फिर बल्कि अच्छी साड़ी पहनकर हँस
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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