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________________ १२० आप्तवाणी-७ वह कहा नहीं जा सकता। यह तो, सिर्फ ये लोग (महात्मा) प्रार्थना करते हैं। बाहरवाले कहीं प्रार्थना करते हैं? बाहरवाले तो 'अब उम्र हो गई है, इसलिए अब ठिकाना नहीं' ऐसा कहते हैं। वे तो ऐसा भी कहते हैं और वैसा भी कहते हैं। उसमें उनका क्या दोष? जगत् व्यवहार है न! वे तो कुछ भी कह सकते हैं। प्रश्नकर्ता : मनुष्य जब अंतिम घड़ी में हो, तब उसे क्याक्या विचार आते हैं? क्या-क्या दिखता है? दादाश्री : मरते समय पूरी जिंदगी का सार देखता है, बहियाँ नहीं पढ़ता। बहियाँ यानी बहीखाते नहीं और हर रोज़ का हिसाब भी नहीं। वे दोनों नहीं पढ़ता। उन दोनों को पढ़ने में तो बहुत टाइम लगेगा और यह तो एक घंटे में पूरा कर देना पड़ता है। सार, पूरी जिंदगी का सार अंतिम घंटे में देख लेता है और उस सार के अनुसार उसका अगला जन्म होता है। यदि पूरी जिंदगी में भक्ति का सार अच्छा हो, सत्संग का सार अच्छा हो, तो वह सार बड़ा हो तो अंतिम घंटे में चित्त ज्यादा से ज्यादा उसी में रहेगा। विषयों का सार बड़ा हो तो मरते समय उसका चित्त विषय में ही जाएगा। किसी को बेटे-बेटी पर मोह हो तो अंतिम घड़ी में चित्त उसी में रहेगा। एक सेठ की मृत्यु का समय आ गया, वे हर प्रकार से अमीर थे। बेटे भी चार-पाँच। उन्होंने कहा, 'पिता जी अब नवकार मंत्र बोलिए।' तब पिता जी ने कहा कि, 'ये बेअक़्ल हैं। अरे, क्या मैं नहीं जानता कि यह बोलना है? मैं अपने आप बोलूँगा। तू वापस मुझे बार-बार कह रहा है?' तो बेटे भी समझ गए कि पिता जी का चित्त अभी कहीं ओर भटक रहा है। फिर सभी बेटों ने सार निकाला कि किसमें भटक रहा है। हमें पैसों का दुःख नहीं है, और कोई अड़चन नहीं है, लेकिन तीन बेटियों की शादी करनी थी उनमें से एक छोटी बेटी रह गई थी। तो सेठ का चित्त छोटी बेटी में था कि मेरी इस बेटी की शादी
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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