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________________ सावधान जीव, अंतिम पलों में (८) ११९ वासना कितनी है! अब ये ममता छूट जाए तो निबेड़ा आ जाए, लेकिन जब तक ममता नहीं छूटेगी तब तक तो प्याला फूटते ही कान लगाकर सुनता है। अरे, आधी नींद में हो तब भी कहेगा कि, 'क्या फूटा अंदर?' यों चार दिन बाद जानेवाले हों, फिर भी आज कलह करते हैं! अरे, जाने का समय आ गया है तो तेरे गठरी-बिस्तर बाँध! तेरे साथ जाने के लिए राहखर्च नहीं चाहिए? लेकिन इतनी समझ होती तो यह सब कलह करता ही नहीं न! लेकिन समझ नहीं है इसलिए इस जंजाल में ही फँसता रहता है वापस! लोग तो, जब कोई बीमार पड़ जाए, तब लोग उससे मिलने जाते हैं। अब, इस देह में बीमारी हुई हो, उसकी वेदना हो और फिर वापस लोग जवाब पूछने आएँ, उसकी मुश्किल हैं! कुछ लोगों को तो तभी संतोष होता है जब सभी मिलने आएँ। बल्कि कुछ तो ऐसा कहते हैं कि, 'नवनीतभाई मुझसे मिलने नहीं आए थे।' कुछ लोगों को तो तभी संतोष होता है जब सभी मिलने आएँ, वे लोग अलग हैं और कुछ को बाँदरेशन होता है, वो लोग अलग। हमें ऐसा होता है कि किसी को तकलीफ नहीं पड़े इसलिए किसी को जानने ही न दूँ, जबकि लोग तो मृत्युशैय्या पर पड़े हुए हों, फिर भी 'वे नगीनभाई मुझसे मिलने नहीं आए' ऐसी नोंध रखते हैं। क्योंकि अहंकार है न! आत्मा और अहंकार दोनों अलग चीजें हैं। अहंकार, वह रोंग बिलीफ से उत्पन्न हो चुकी चीज़ है। खुद के स्वरूप का भान नहीं होने से 'मैं यह हूँ, मैं यह हूँ,' ऐसा सिर्फ इफेक्ट ही है। अब वह अहंकार जो खड़ा हो चुका है, फिर कैसे छूट सकता है? जाने का समय हुआ तब भी कहेंगे कि, 'फलाने भाई मुझसे मिलने नहीं आए।' उसकी नोंध रखता है। अब इसका तो कैसे पार आए? और जो मिलने आते हैं, वे बाहर निकलकर क्या कहते हैं कि, 'अब ये एक-दो दिन के मेहमान हैं।' उनके आत्मा को ही देखने में फायदा है। बाकी का सारा पागलपन देखने जैसा नहीं है।' पागलपन में क्या कह दे,
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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