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________________ बनता है! जहाँ पर परिणाम की दृष्टि खुलती जाती है, वहाँ पर आत्मा प्रकट होता जाता है। उसमें जो परिणाम को जानता है, वह आत्मा है। __५. चिंता से मुक्ति चिंतारहित कौन है? 'मेरा क्या होगा?' करके अपार चिंताएँ करता है! चिंता भेजता कौन है? कोई भेजनेवाला नहीं है। चिंता का मूल कारण? चिंता, वह सबसे बड़ा अहंकार है। 'यह मैं चला रहा हूँ, मेरे बिना यह नहीं होगा' ऐसी जिसे मान्यता है, उसी को चिंता होती है। और वही अहंकार है! जिसकी चिंता गई उसे बरते समाधि! कर्ता संबंधित करेक्ट ज्ञान यानी 'व्यवस्थित कर्ता' है, वह ज्ञान हमेशा के लिए चिंतामुक्त बनाता है। बेटी की शादी की चिंता, व्यापार में नुकसान हो तब चिंता, बीमार हए कि चिंता! चिंता करने से बल्कि अंतराय कर्म डलते हैं! ज्ञानीपुरुष आत्मज्ञान करवाते हैं, वास्तव में 'कर्ता कौन है?' कर्ता 'व्यवस्थित शक्ति' है, ऐसा समझाते हैं, तब हमेशा के लिए चिंता चली जाती है। जब चिंता बंद हो जाए, तभी से मोक्षमार्ग शुरू हुआ कहा जाता है! इस वर्ल्ड में किसी को कुछ भी करने की सत्ता नहीं है, सबकुछ परसत्ता में ही है। सहज अहंकार से संसार चलता रहता है, लेकिन यह चिंता तो विकृत हो चुका अहंकार है, वह जी जलाता ही रहता है रात-दिन! प्रतिकूल संयोग आने पर यदि कोई चिंता करे तो दो नुकसान उठाता है और चिंता नहीं करे तो एक ही नुकसान उठाता है! और जो सिर्फ आत्मा में ही रहता है, उसे तो कहीं भी नुकसान है ही नहीं! अनुकूल-प्रतिकूल दोनों एक समान ही है वहाँ! ६. भय में भी निर्भयता पूरा वर्ल्ड विरोध करे, फिर भी हम अंदर से ज़रा सा भी विचलित नहीं हों, ऐसा हो जाना चाहिए। 15
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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