SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह कैसी संक्षिप्त लेकिन उमदा परिभाषाएँ हैं! लक्ष्मी के स्पर्श का नियम है, उस नियम से बाहर लक्ष्मी का स्पर्श हो ही नहीं सकता, फिर वह कम आए तो हाय-हाय कैसी? और अधिक आए, तो छाक (उन्माद) कैसा? ‘अपने लिए तो कमी न पड़े और भरमार न हो जाए, उतना हुआ तो बहुत हो गया।' - दादाश्री लक्ष्मी संबंधित इस सूत्र को जीवन में उतारकर जगत् के सामने प्रस्तुत किया गया है! भरमार के पूजक और कमी के विराधक, दोनों को यह सूत्र बैलेन्स में ले आता है! ३. उलझन में भी शांति! जब से उठे तभी से उलझनें। टेबल पर चाय पीते समय भी झंझट और भोजन करते समय भी झंझट! व्यवसाय में भागीदार की झिड़की सहना और घर पर पत्नी की झिड़की खाना! इस उलझन में से बाहर निकलना हो, तो 'रियल' में आना पड़ेगा। 'रिलेटिव' में तो निरी उलझनें ही हैं! परवशता किसी को भी पसंद नहीं है लेकिन परवशता से बाहर जा नहीं पाते। रोज़ वही की वही कोठड़ी, वही का वही पलंग और वही का वही तकिया! नो वेराइटी! संसार के सार के रूप में क्या मिला? सार निकालें तो अभी ही मिले, ऐसा है! पूँजी के रूप में कौन सा सुख मिला? ४. टालो कंटाला किसी भी जगह पर बोझ और कंटाला नहीं आए, वैसी आंतरिक स्थिति तक पहुँचना है! उपयोगमय जीवन की सूक्ष्मातिसूक्ष्म जागृति ज्ञानी विकसित करते हैं कि नाखून काटकर रास्ते में डाल दें तो वहाँ पर असंख्य चींटियाँ इकट्ठी हो जाती हैं। यदि उन पर किसी का पैर पड़े तो? उसका निमित्त डालनेवाला 14
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy