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________________ १०८ आप्तवाणी-७ से मुझे कहो कि, मुझे पीछे से क्या उपनाम दिया है?' तो नौकरों ने अलग-अलग नाम बता दिए। किसीने टुच्चा कहा, किसीने लुच्चा नाम दिया, सभी ने अपने-अपने नाम बता दिए। तब मैंने कहा कि, 'तेरे पीठ पीछे कैसे नाम रखे हैं!' लोग नाम रखते हैं. और फिर नौकर ने सेठानी के लिए भी नाम रखा होता है कि 'यह कर्कशा है।' पर्याय देखकर निकली हुई वाणी इतना छोटा बच्चा हो न, वह भी जान-बूझकर प्याला नहीं फोड़ता। हम कहें, 'फोड़ दे।' तब भी नहीं फोड़ेगा। लेकिन अगर उसके हाथ से फूट जाए तो वह चिंता-विंता कुछ नहीं करता। अगर उसके माँ-बाप टेढे हों तो वह रो ज़रूर उठेगा कि 'ये डाँटेंगे अब!' प्रश्नकर्ता : आप जानते हैं यह सब? दादाश्री : ऐसा है, इस ज्ञान में हमें सबकुछ दिखता है। सभी पर्याय हमें पता चलते हैं। हर एक पौद्गलिक पर्याय जो कुछ भी है न, वे सब हमें सूक्ष्म रूप से दिखते हैं, इसलिए हम आपको जवाब दे सकते हैं। नौकर तो निमित्त, हिसाब खुद का ही __प्याले फूट जाएँ, तब भी कढ़ापा होता है। नौकर को गालियाँ देता है कि, 'तेरे हाथ टूटे हुए हैं, तेरे ऐसे टूटे हुए हैं।' उस घड़ी यदि ऐसा सोचे कि, 'मैं इसकी जगह पर होऊँ तो मेरी क्या दशा होगी? मुझे कितना दु:ख होगा?' कोई ऐसा सोचता है? नौकर के मन में क्या होता है कि, 'यह सेठ मुझे बिना बात के डाँट रहा है, मेरा गुनाह नहीं है। मैं तो नौकर हूँ और नौकरी कर रहा हूँ, इसलिए मुझे डाँट रहा है।' बेचारे को ऐसा होता है। अतः ऐसे नासमझी से अमीर लोग गरीबों को दुःख दे देते
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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