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________________ कढ़ापा-अजंपा (७) १०७ फिर भी खुद वीतरागता में रहते हैं। डाँटना वगैरह सब समय के अधीन होता है क्योंकि यदि वैसा नहीं करें तो वह व्यक्ति किसी नये ही प्रकार के उल्टे रास्ते पर चला जाए, ऐसा हो सकता है। इसलिए दोनों ज़िम्मेदारियाँ संभालनी है। सामनेवाला व्यक्ति हमारे निमित्त से उल्टा नहीं चले और काम भी चलने देना है। नौकर कहीं प्याले फोड़ता होगा? यह तो पूरा दिन कढ़ापा-अजंपा, कढ़ापा-अजंपा, एक प्याला फूट जाए न, तब भी शोर और कलह कर देता है! हम इस बच्चे से पूछे कि, 'भाई, यह प्याला फूट गया तो तू क्यों कुछ नहीं कह रहा?' तब वह कहेगा कि, 'मुझे क्या?' तो वह तो ज्ञानी कहलाएगा, अज्ञानी ज्ञानी! किसलिए? ये लोग नौकर को डाँट रहे हैं, वह बच्चा क्या ऐसा नहीं समझता? वह देखता रहता है कि 'ये क्यों डाँट रहे हैं? यह नौकर तो अच्छा है और इस बेचारे को ये लोग डाँट रहे हैं!' वर्ना, प्याला तो यह छोटा बच्चा भी नहीं फोड़ता। इस छोटे बच्चे से कहें कि, 'जा बेटा, ये प्याले बाहर फेंक आ।' तो नहीं फेंकेगा। कई बार मैं बड़ौदा जाता हूँ न, तब मैं बच्चे से कहता हूँ कि, 'ये दादा के बूट हैं न, ये बाहर फेंक दे।' तब वह कंधे उचकाता है। वह समझता है कि ये नहीं फेंकने चाहिए। अब यदि छोटा बच्चा भी नहीं फोड़ता, तो इतना बड़ा नौकर तो क्यों फोड़ेगा? फिर भी सेठानी डाँटती रहती है तो नौकर मन में समझ जाता है कि 'यह कर्कशा है।' अपने साथवाले दूसरे नौकर से कहता भी है कि 'मेरी सेठानी तो कर्कशा है!' ...और फिर नौकर के अभिप्राय कैसे! हमारे एक पार्टनर थे, वे बहुत सख़्त थे। तब मैंने उनसे कहा कि, 'अपने नौकर से पूछो तो सही कि 'भाई, आज मैं तुम्हें दंड नहीं दूंगा, नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा, लेकिन अपने दिल
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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