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________________ भय में भी निर्भयता (६) ९५ तो भय है और आप शुद्धात्मा बन गए तो भय किसका? वर्ना जगत् प्रतिक्षण भयवाला है। ये लोग तो जागृत नहीं हैं, इसलिए भय नहीं लगता। लोग तो चैन से ऐसे घूमते हैं न! वे किस आधार पर ऐसे बेफिक्र होकर घूमते हैं? लेकिन उसका भी भान नहीं है! नहीं तो जगत् प्रतिक्षण भयवाला है। एक क्षण भी ऐसा नहीं है कि निर्भयता रहे। प्रश्नकर्ता : आप जिस भय की बात कर रहे हैं, वह कौन सा भय है? दादाश्री : एक क्षण भी निर्भयता रहे ऐसी जगह ही नहीं है यह! अभी अगर कहीं से चक्रवात आए और सब तहस-नहस कर डाले, उसका कुछ कह नहीं सकते। यहाँ से बाहर निकले तो कब कुचले जाओगे, वह कहा नहीं जा सकता, रात को सो गए हों और कब क्या काटेगा, वह कहा नहीं जा सकता। घर गए और पानी पीया, पानी में न जाने क्या गिरा होगा, वह कह नहीं सकते। अतः जगत् प्रतिक्षण भयवाला है, निर्भय रहा जा सके, ऐसी कोई जगह है ही नहीं। यह तो अजागृति के कारण लोग घूमते हैं, विवाह करते हैं, व्यापार करते हैं। अजागृति है, इसीलिए चल रहा है, जागृति में ऐसा नहीं चलेगा! एक फार्म सुपरिन्टेन्डेन्ट थे, उन्होंने मुझसे कहा कि, 'दादा, इस 'व्यवस्थित' को किस तरह मानें? ऐसी अंधश्रद्धा क्यों रखें?' मैंने कहा कि, 'यह व्यवस्थित अंधश्रद्धा नहीं है, सच्ची श्रद्धा है।' अब उन्होंने ज्ञान नहीं लिया था, इसलिए उन्हें अंधश्रद्धा ही लगेगा न! फिर एक दिन उनके फार्म पर गया, तब मैंने पूछा कि, 'अंधश्रद्धा और सच्ची श्रद्धा के बारे में आप जानते हो?' तब उन्होंने कहा कि, 'मैं अंधश्रद्धा रखता ही नहीं।' मैंने कहा कि, 'पूरा जगत् ही अंधश्रद्धा में जी रहा है।' तब कहा कि, 'मेरी कौन सी अंधश्रद्धा है, बताइए।' मैंने कहा कि, 'बताऊँगा।' इन्हें प्रत्यक्ष उदाहरण दें, तब काम का। ऐसे बुद्धि से सोचने को कहें तो फिट नहीं होगा।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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