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________________ ९० आप्तवाणी 6 ू - प्रश्नकर्ता : कढ़ी बिगड़ जाएगी । दादाश्री : क्यों? बुद्धि भी प्रकाश है न? यानी बुद्धि अपने आप कुदरती रूप से जितनी उपयोग में आती है उतनी बुद्धि ही काम की है, बाकी जो ज़रूरत से ज़्यादा बुद्धि है वह परेशान - परेशान कर देती है, और यदि बुद्धि का उपयोग करना ही हो तो सभी जगह करो न! ये लोग पानी पीते हैं, वे क्या बुद्धिपूर्वक पीते होंगे? बुद्धिपूर्वक यानी क्या? 'इस पानी में कुछ गिर गया होगा,' ऐसा सब देखता या सोचता है? वहाँ पर ऐसी बुद्धि का उपयोग करते हैं क्या? प्रश्नकर्ता : नहीं, दादा। दादाश्री : तो फिर, जब भोजन करते हैं, वह बुद्धिपूर्वक करते होंगे न? कि दाल बनाते समय क्या गिर गया होगा ! ऊपर से छिपकली ने बीट कर दी होगी, वह अंदर गिर गई होगी, ऐसा सोचते हैं? यानी यदि बुद्धि का उपयोग करें तो न तो खा सकते हैं न ही पी सकते हैं। इस होटलवाले के वहाँ जाकर भी खा आते हैं, वहाँ भी बुद्धि का उपयोग नहीं करते । यदि बुद्धि का उपयोग करें तो ? तो फिर वह खाया कैसे जाएगा? इसलिए बुद्धि का उपयोग कहाँ तक करना चाहिए, हमें उसका डिसीज़न कर लेना चाहिए। प्रश्नकर्ता : इस बुद्धि का उपयोग किस तरह करना, कहाँ करना, कहाँ पर नहीं करना, सामान्य लोगों को वह ऐसे पता नहीं चलेगा न? दादाश्री : लेकिन इतने हिस्से में उपयोग नहीं करते तो कुछ नुकसान हुआ है क्या इन लोगों को? प्रश्नकर्ता : नहीं हुआ । दादाश्री : यदि बुद्धि का उपयोग किया होता तो अधिक
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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