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________________ भय में भी निर्भयता (६) ८९ दादाश्री : दूर है, ऐसा आप कैसे जानते हो? प्रश्नकर्ता : जब तक भय लगता है, तब तक तो पक्का ही है न कि मंजिल बहुत दूर है । दादाश्री : नहीं, लेकिन वह भय कोई निकाल दे तो? आपका किसीने निकाल दिया है? लेकिन और किसी भी प्रकार से वह भय नहीं जाएगा। वह तो जब 'ज्ञानीपुरुष' या उनके भीतर जो आत्मा प्रकट हो चुका है, जो परमात्मा प्रकट हो चुके हैं, उनकी सीधी कृपा उतरे तभी भय जाएगा। हमें क्यों भय नहीं है? क्योंकि हमारा बिल्कुल करेक्ट है। करेक्ट को क्या भय? जिसका बिल्कुल करेक्ट है, उसे जगत् में क्या भय है? भय तो किसे रहता है कि जिसके भीतर गोलमाल हो उसे भय रहता है, नहीं तो इस जगत् में क्या भय है? I पूरे दिन घबराहट, घबराहट, घबराहट ! न जाने क्या हो जाएगा! क्या हो जाएगा? फलानी जगह पर हुल्लड़ हो रहा है ! बेकार ही घबराता रहता है। अरे, तू यहाँ भोजन करने बैठा है, खा ले न चैन से! तो कहेगा, 'नहीं, लेकिन वहाँ पर हुल्लड़ हुआ है न!' यानी ये लोग जो सुख है, प्राप्त सुख है, वह भी नहीं भोगते । जो सुख प्राप्त हुआ है, क्या वह नहीं भोगना चाहिए? वे प्राप्त को नहीं भोगते और अप्राप्त की चिंता करते हैं। यह सारी थ्योरी ही रोंग है। भगवान ने पहले से ही कहा है कि 'प्राप्त को भोगो और अप्राप्त की चिंता मत करो।' अप्राप्त आपके हाथ में नहीं है। आपको जब प्राप्त हो जाए, हाथ में आए तब उस चीज़ को भोगना। जो अप्राप्त है, वह चीज़ हाथ में नहीं है। बुद्धि का उपयोग, परिणाम स्वरूप दखलंदाजी ही ! दादाश्री : हम कढ़ी बनाएँ, उसमें बुद्धि का उपयोग करें तो क्या होगा?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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