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________________ लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए सोचना नहीं चाहिए। पसीना लाने के लिए कोई सोचता है? ऐसा सुंदर लेकिन सटीक उदाहरण 'ज्ञानीपुरुष' कितने सुंदर प्रकार से फिट करवा देते हैं! लक्ष्मी प्राप्त करने में रेसकोर्स मुख्य भूमिका अदा करता है, जिसका परिणाम मात्र हाँफकर मर जाने के अलावा और कुछ भी नहीं आता। लक्ष्मी के लिए, 'संतोष रखना चाहिए, संतोष रखना चाहिए' के नगाड़े हर एक उपदेशक बजाते हैं, लेकिन 'ज्ञानीपुरुष' तो कहते हैं कि इस प्रकार से संतोष रखने से रहेगा ही नहीं! और वह हमारा रोज़ का अनुभव है। इतना ही नहीं, लेकिन संतोष के लिए एक्जेक्ट वैज्ञानिक रहस्य खोल देते हैं कि, 'संतोष तो, जितना ज्ञान हो उतनी मात्रा में स्वाभाविक रूप से संतोष रहेगा ही। संतोष, वह करने की चीज़ नहीं है, वह तो परिणाम है।' -- दादाश्री लक्ष्मी का ध्यान आत्मध्यान या धर्मध्यान में बाधक होता है। क्योंकि... 'सिर्फ लक्ष्मी का ध्यान कभी किया जाता होगा? लक्ष्मी का ध्यान एक तरफ है, तो दूसरी तरफ ध्यान चूक जाएंगे। स्वतंत्र ध्यान में तो लक्ष्मी तो क्या, स्त्री का ध्यान भी नहीं करना चाहिए, स्त्री का ध्यान करेगा तो स्त्री जैसा बन जाएगा! लक्ष्मी का ध्यान करेगा तो चंचल हो जाएगा। लक्ष्मी चलित और वह भी चलित! लक्ष्मी तो सभी जगह घूमती रहती है निरंतर। उसी तरह वह भी सभी जगह घूमता रहेगा। लक्ष्मी का ध्यान करना ही नहीं चाहिए। सबसे बड़ा रौद्रध्यान है वह तो!' - दादाश्री लक्ष्मी की चिंतना से सूक्ष्म स्तर पर जो भयंकर परिणाम आते हैं, वे ज्ञानी के अलावा कौन स्पष्ट कर सकता है? लक्ष्मी की अधिक आशा रखना अर्थात् सामनेवाले की थाली में से निवाला छीन लेने जैसा गुनाह है, यह जोखिम किसने समझा?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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