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________________ विवाह से पहले ‘विवाह का परिणाम वैधव्य' ऐसा लक्ष्य में होना ही चाहिए ! दोनों में से एक को तो कभी न कभी वैधव्य आएगा ही न? इज़्ज़तदार तो वह कहलाता है कि जिसकी सुगंधी चारों ओर आए! यह तो घर पर ही दुर्गंध देता है तो बाहर की क्या बात ? नकल करनेवाला कभी भी रौब नहीं जमा सकता ! बाहर जाए और पेंट पर हाथ मारता रहता है ! अरे, कोई तुझे देखने के लिए फालतू नहीं है! सभी अपनी-अपनी चिंता में पड़े हुए हैं ! खुद का हित कब होगा? औरों का करेंगे तब ! सांसारिक हित अर्थात् नैतिकता, प्रामाणिकता, कषायों की नॉर्मेलिटी, कपट रहितता । और आत्मा का हित अर्थात् मोक्षप्राप्ति के पीछे ही पड़ना, वह ! २. लक्ष्मी की चिंतना? ! सामान्यतः जन समाज में लक्ष्मी संबंधी प्रवर्तित उल्टी मान्यताएँ कहाँ-कहाँ, किस प्रकार से मनुष्य से अधोगति के बीज डलवा देती हैं, उसका सुंदर चित्रण ‘ज्ञानीपुरुष' प्रस्तुत करते हैं और 'लक्ष्मी, वह तो बाइप्रोडक्ट है । ' - दादाश्री ऐसा कहकर लक्ष्मी के प्रोडक्शन में डूबे हुए लोगों की आँखें खोल देते हैं और पूरी जिंदगी की मज़दूरी का एक ही वाक्य में बाष्पीकरण करवा देते हैं! इतना ही नहीं, लेकिन आत्मा प्राप्त कर लेना ही मेन प्रोडक्शन है, ऐसी समझ पकड़वा देते हैं ! लक्ष्मी का संग्रह करनेवालों को लालबत्ती दिखाई हैं कि इस काल की लक्ष्मी क्लेश लानेवाली होती है, उसका तो खर्च हो जाना ही उत्तम है। उसमें भी यदि धर्म के मार्ग पर खर्च होगी तो सुख देकर जाएगी और अधर्म के मार्ग पर तो रोम-रोम में काटकर जाएगी। अधर्म से भी, जितनी निश्चित है उतनी ही लक्ष्मी आएगी और धर्म से भी जितनी निश्चित है उतनी ही लक्ष्मी आएगी, तो फिर अधर्म करके इस भव को और पर भव को किसलिए बिगाड़ें? 11
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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