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________________ आप्तवाणी-६ २१ दादाश्री : मोक्ष में पहुँचने तक कुछ भी परेशानी हो, ऐसा नहीं है। मोक्ष में जाने के लिए जैसे कोड चाहिए, वे अगले जन्म में उत्पन्न होंगे। अभी मुझे पूछकर जितना माल भरेगा, उससे अगले जन्म में फिर वैसा ही कोड उत्पन्न होगा। अभी एक जन्म है न? प्रश्नकर्ता : तीर्थंकरों की वाणी के कोड कैसे होते हैं? दादाश्री : उन्होंने ऐसा कोड निश्चित किया होता है कि 'मेरी वाणी से किसी भी जीव को किंचित्मात्र भी दुःख नहीं हो। दुःख तो हो ही नहीं, परंतु किसी जीव का किंचित्मात्र प्रमाण भी नहीं दुभे (आहत हो), पेड़ का भी प्रमाण नहीं दुभे।' ऐसे कोड सिर्फ तीर्थंकरों के ही हुए होते प्रश्नकर्ता : वाणी बोलते समय किस प्रकार की जागृति रखनी चाहिए? दादाश्री : जागृति ऐसी रखनी है कि 'ये बोल बोलने में किसकिसका किस प्रकार से प्रमाण दुभ रहा है', उसे देखना है। प्रश्नकर्ता : पाँच लोगों को एक ही शब्द कहते हैं, तो सभी को अलग-अलग तीव्रता से मन दु:खता है, उसका क्या करें? दादाश्री : हमें जागृति रखकर फिर बोलना है। हमें जितना समझ में आए उतना करना है। उसका उपाय नहीं है। ये 'चंदूभाई' न्यायसंगत बोलते हों फिर भी सामनेवाले को दुःख हो, ऐसा भी बहुत बार होता है। अब उसका उपाय क्या? परंतु वह कुछ ही लोगों के साथ होता है। सब जगह नहीं होता। इसलिए वहाँ पर दूसरे पटाखे नहीं फोड़ें तभी आपके पटाखे बंद होंगे। वर्ना एक व्यक्ति फोड़ेगा तो आपको नहीं फोड़ना होगा, फिर भी फूट जाएगा। इसलिए यदि सभी पक्का करें कि हम पटाखे जलाने बंद कर देंगे तो वह बंद होगा, नहीं तो नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : नया कोड हो तो अगले जन्म में इफेक्ट देगा या इस जन्म में भी इफेक्ट देगा?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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