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________________ आप्तवाणी-६ इसे डाँटा 'वह ठीक है', तब फिर वापस वैसे हिसाब का कोडवर्ड बना और इसे डाँटा, 'वह गलत हुआ', ऐसा भाव हुआ तो कोडवर्ड आपका नई प्रकार का बना। यह डाँटा वह ठीक किया ऐसा माना कि उसके जैसा ही वापस कोडवर्ड उत्पन्न होता है और उससे वह अधिक वज़नदार (मज़बूत) बनता है। उसे 'यह बहुत खराब हो गया, ऐसे नहीं बोलना चाहिए, ऐसा क्यों होता है?' ऐसा हो तो कोड छोटा हो जाता है। प्रश्नकर्ता : अब यह ठीक किया ऐसा भी नहीं हो और ठीक नहीं किया ऐसा भी नहीं हो, तब फिर कोड उत्पन्न होगा? दादाश्री : वह तो मौन रहने का निश्चिय करे तो मौन हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : कई बार मुँह से नहीं बोला जाता, लेकिन अंतरवाचा होती है न? अंदर भाव बिगड़ते रहते हैं, उसका क्या? दादाश्री : आपको खुद अपने आपको अंदर कह देना है कि ऐसा गलत नहीं होना चाहिए। ऐसा सुंदर होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : फिर सुंदर का कोड आ जाएगा न? दादाश्री : सुंदर का कोड तो आएगा ही न! प्रश्नकर्ता : वह फिर वापस नया कोड बनता है, उसके लिए नया देह धारण करना पड़ेगा? इसके बजाय तो कोड नहीं बनें, ऐसा हमें चाहिए। दादाश्री : यह तो एकाध जन्म चले उतना ही है। बाद में तो आपके कोड ऐसे रहेंगे ही नहीं। जिसकी आज खराब भाषा नहीं है, उन लोगों ने कोड बदला नहीं और जिसकी खराब भाषा है, उन्होंने कोड बदले हैं। यानी वे कच्चे पड़ गए हैं और ये पक्के हो गए हैं। जो कहते हैं, 'दादा, मेरी यह वाणी कब सुधरेगी?' तब से हम नहीं समझ जाते कि यह कोड बदल रहा है?! प्रश्नकर्ता : जिसे मोक्ष में जाना है उसे तो कोई कोड दाख़िल ही नहीं करना है न? उसके लिए क्या करना चाहिए?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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