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________________ आप्तवाणी-६ के पास रखकर, विशेष परिणाम उत्पन्न होते हैं। जब तक इतनी बड़ी ककड़ियाँ नहीं मिलें, तब तक अंदर भाव उत्पन्न होता है कोई? परंतु मिल जाएँ तो विशेष परिणाम खड़े होते हैं कि बहुत अच्छी ककड़ी है! परंतु नहीं देखें और नहीं मिलें तो कुछ भी नहीं! तब कोई कहे, 'इन लोगों के लिए एकदम एकांत ढूँढ निकालो कि जहाँ इन्हें किसी व्यक्ति से मिलने ही नहीं दें, वहाँ पर रखें तो?' परंतु वैसा नहीं चलेगा! उसकी जो स्थापना हो चुकी है, प्रतिष्ठा हो चुकी है न, वह फूटेगी और फिर से दूसरी नई प्रतिष्ठा खड़ी किए बिना रहेगा नहीं। इस प्रकार की, नहीं तो दूसरे प्रकार की, परंतु उसके विशेष परिणाम छूटेंगे नहीं। खुद का स्वरूपभान हो जाए, वह जो आनंद, जो सुख ढूँढ रहा है, वह सुख मिले, उससे दृष्टिफेर हो जाएगा, दृष्टि शुद्ध हो जाएगी। फिर विशेष परिणाम खड़ा नहीं होगा। यानी वास्तव में क्या है कि 'शुद्ध ज्ञान, वह आत्मा है और शुभाशुभ ज्ञान, अशुद्ध ज्ञान, वह सारा जीव है।' शुभाशुभ में है, तब तक जीवात्मा है, वह मूढ़ात्मा है। शुद्धात्मा तब बनता है, जब समकित होता है, पहले प्रतीति बैठती है, 'मैं शुद्धात्मा हूँ'। कोई भी व्यक्ति ऐसे ही शुद्धात्मा नहीं बन जाता, परंतु पहले प्रतीति बैठती है। फिर उस अनुसार ज्ञान होता है, और उसके अनुसार बरताव होता है। पहले मिथ्यात्व प्रतीति थी, तो मिथ्यात्व ज्ञान खड़ा हुआ और मिथ्यात्व वर्तन खड़ा हुआ। ज्ञान होता है, तब वर्तन अपने आप ही आता जाता है, कुछ करना नहीं पड़ता। मिथ्यात्वश्रद्धा और मिथ्यातवज्ञान इकट्ठे हों, तब अपने आप वैसा बरताव हो ही जाता है - करना नहीं पड़ता, फिर भी वह कहता है कि 'करना है' वह उसका अहंकार है। उसने ऐसा मान लिया था कि, मिस्त्री के काम में ही मज़ा आएगा और मिस्त्री के काम में ही सुख है, तो वह मिस्त्री बन जाता है। फिर प्रतीति बैठे, तब मिस्त्री के काम का उसे ज्ञान उत्पन्न होता है, और ज्ञान और श्रद्धा दोनों एक हो जाएँ, तब आचरण में तुरंत आ ही जाता है। ऐसे हाथ रखा और ईंट चिपके, हाथ रखा और ईंट चिपके! हर एक ईंट को ऐसे देखना नहीं पड़ता। अर्थात् खुद को बुद्धि के आशय के अनुसार सबकुछ मिल जाता है। किसी को कुछ करना नहीं पड़ता। बुद्धि के आशय में चोरी करनी
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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