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________________ आप्तवाणी-६ दादाश्री : भावकर्म सभी को होते हैं, लेकिन बुद्धि के आशय हर एक के अलग-अलग होते हैं। वह क्षेत्र के अधीन है। यह काँच, फिर इस काँच में से जो दिखता है वह भाव है, फिर क्षेत्र, और काल के आधार पर बुद्धि का आशय होता है। हालांकि काँच की इतनी अधिक खास वेल्यु नहीं है। यह काँच इस तरह उत्पन्न होता है कि इस भव में जो कुछ भी किया, कि उसमें लोगों को सुखदायी हों ऐसे काम किए हों तो काँच वैसे ही निर्मल होते हैं, जिससे उसे अच्छा दिखता है। ठोकरें बहुत नहीं लगतीं, और जिसने लोगों को दु:खदायी हो पड़ें, ऐसे काम किए हों, उसके काँच तो इतने अधिक मैले होते हैं, कि उसे दिन में भी सच्ची वस्तु नहीं दिखती, और फिर उस पर बहुत दुःख पड़ते हैं। यानी काँच का आप किस तरह उपयोग करते हो उस पर आधारित है। पूरी जिंदगी एक ही काँच के आधार पर चलाना होता है। मूल क्या है? तब कहें कि, ज्ञान खुद का है ही, परंतु उस ज्ञान पर काँच है। उस काँच में से देखकर सबकुछ चलाना है। इस बैल की आँखों पर पट्टी बांध देते हैं, उस जैसा यह बांधते हैं। अब उसमें से थोड़ा खुल जाए तो उतना-उतना दिखता है और चिंता, उपाधि (बाहर से आनेवाले दुःख) करता रहता है। खुद के आशय के अनुसार उसे सबकुछ मिलता रहता है। वह खुद के आशय को यदि समझ जाए तो बहुत हो गया, बुद्धि का आशय तुझे समझ में आया? प्रश्नकर्ता : व्यवहार कैसा होना चाहिए, वह निश्चित करने के लिए जो निश्चित होता है, वहाँ बुद्धि का आशय है? दादाश्री : मुझे किसमें सुख लगेगा? ऐसा ढूँढता रहता है। अतः फिर वह विषय में सुख मानने लग जाता है। फिर वापस ऐसा भाव करता है कि बंगला नहीं हो तो चलेगा, अपने पास तो एकाध झोंपड़ा हो तब भी चलेगा। इसलिए फिर उसे दूसरे जन्म में झोंपडा मिलेगा! हरएक को अलग-अलग मकानों में अच्छा लगता होगा न, रात को नींद आती होगी न? प्रश्नकर्ता : अच्छा लगता है। दादाश्री : किसलिए मुझे ऐसा और उसे ऐसा, पूरी रात ऐसा नहीं
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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