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________________ [२८] 'देखना' और 'जानना' है जहाँ, परमानंद प्रकट होता है वहाँ! प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा का लक्ष्य निरंतर रहता है, फिर भी बहुत बार मन 'डिप्रेस' हो जाता है, उसका क्या कारण है? दादाश्री : अपना ज्ञान तो क्या कहता है कि 'चंदूभाई' को क्या हो रहा है, वह देखते रहो। दूसरा कोई उपाय है ही नहीं न! अधिक कचरा भरकर लाया है, वैसा हमें पता चल जाता है न? प्रश्नकर्ता : उस समय ज्ञेय-ज्ञाता का संबंध नहीं रह पाता, और 'इस मन-वचन-काया से मैं अलग ही हूँ' ऐसा उस समय नहीं रह पाता। दादाश्री : वह ज्ञेय-ज्ञाता का संबंध नहीं रहे, तो तुझे पता ही नहीं चलेगा कि चंदूभाई का यह चला गया है! यह पता किसे चलता है? इसलिए यह बिल्कुल जुदा रहता है तुझे! एक-एक मिनट का पता चलता है। प्रश्नकर्ता : परंतु पता चल जाने के बाद वह बंद हो जाना चाहिए न? और वापस आत्मा की तरफ़ मुड़ जाना चाहिए न? दादाश्री : वह मोड़ने से मुड़ जाए ऐसा नहीं है। आप क्या, मोड़ लो ऐसे हो? प्रश्नकर्ता : तब तो दादा, इस तरह 'मशीनरी' उल्टे रास्ते पर चलती ही रहेगी और हमें उसे 'देखते' ही रहना है सिर्फ? दादाश्री : और दूसरा क्या करना है? उल्टा रास्ता और सीधा रास्ता दोनों रास्ते ही हैं, उन्हें 'देखते' ही रहना है।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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