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________________ आप्तवाणी-६ २२५ लिए अभिप्राय टूटा और आप उसके साथ खुश होकर बात करोगे तो वह भी खुश होकर आपसे बात करेगा। फिर उस घड़ी आपको उसकी प्रकृति नहीं दिखेगी! यानी अपने मन की छाया उस पर पड़ती है! हमारे मन की छाया सभी पर किस तरह पड़ती है! अगर घनचक्कर हो, तो भी सयाना हो जाता है! अगर अपने मन में ऐसा हो कि 'रमणभाई' पसंद नहीं है, तो रमणभाई के आने से नापसंदगी उत्पन्न होगी और उसका फोटो उस पर पड़ेगा! उसके अंदर तुरंत फोटो पड़ता है कि इनके अंदर क्या चल रहा है! अपने भीतर के वे परिणाम सामनेवाले को उलझाते हैं। सामनेवाले को खुद को पता नहीं चलता, परंतु उसे उलझाते हैं! इसलिए आपको अभिप्राय तोड़ देने चाहिए! अपने सभी अभिप्राय आपको धो देने चाहिए, ताकि आप छूट जाओ। वर्ना सभी के लिए आपको कहीं कुछ ऐसा नहीं होता। कोई रोज़ चोरी करता हो तो आपको, 'वह चोर है', ऐसा अभिप्राय बनाने की ज़रूरत ही क्या है? वह चोरी करता है, वह उसके कर्म का उदय है ! और जिसका उसे लेना है, वह उसके कर्म का उदय है, उससे हमें क्या लेना-देना? परंतु यदि उसे हम चोर कहें तो वह अभिप्राय ही है न। और वास्तव में तो वह आत्मा ही है न। भगवान ने सबको निर्दोष देखा था। किसी को उन्होंने दोषित देखा ही नहीं और हमारी वैसी शुद्ध दृष्टि हो जाएगी, तब शुद्ध वातावरण हो जाएगा। फिर पूरा जगत् बगीचे जैसा लगेगा। वास्तव में लोगों में कोई दुर्गंध नहीं है। लोगों के बारे में स्वयं अभिप्राय बांधता है। हम चाहे किसी की भी बात करें, परंतु हमें किसी के लिए अभिप्राय नहीं रहता कि, 'वह ऐसा ही है!' फिर अनुभव भी होता है कि अभिप्राय निकाल दिए इसलिए इस व्यक्ति में यह परिवर्तन हो गया! अभिप्राय बदलने के लिए क्या करना पड़ेगा? कि यदि वह चोर हो तो हमें 'वह साहूकार हैं', ऐसा कहना चाहिए। 'मैंने इसके लिए ऐसा अभिप्राय बनाया था, वह अभिप्राय गलत है, अब यह अभिप्राय मैं छोड़ देता हूँ', इस तरह 'गलत है, गलत है' कहना चाहिए।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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