SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मज़ाक से टूटता है वचनबल ज्ञानी की Flexibility संसार पारस्परिक संबंध [२२] १५९ आपको दुःख है ही कहाँ ? हस्ताक्षर के बिना मृत्यु भी नहीं१६३ १६६ आपका बिगाड़नेवाला कौन ? प्रीकॉशन, वही 'चंचलता' १६७ [२३] बुद्धिशाली तो कैसा होता है ? दख़ल नहीं, 'देखते' रहो! [ २४ ] अबला का क्या पुरुषार्थ ? सुलझा हुआ व्यवहार, वही ... कषायों से कर्म बंधन १५५ १५६ १५७ [ २५ ] आराधना करने जैसा... और... निजवस्तु रमणता [ २६ ] शुद्धात्मा और कर्मरूपी पच्चड़ अरीसा सामायिक अरीसा में ठपका सामायिक १६९ १७३ 'देखत भूली' टले तो... 'वाह - वाह' का 'भोजन' प्रतिक्रमण की गहनता शुद्धात्मा और प्रकृति परिणाम सामनेवाले को समाधान दो असमाधानों में एडजस्टमेन्ट या... अप्रतिक्रमण दोष, प्रकृति का या... १९३ अक्रम मार्ग से एकावतारी १८७ . १८९ १९४ १७५ १७६ १७८ १७९ १८२ १८३ १८४ १९६ १९७ २०१ २०२ २०३ अरीसाभवन में केवलज्ञान ! कुसंग का रंग... 24 [ २७ ] अटकण से लटकण और.... २०६ २०७ २०९ अटकण, अनादि की ! २१० २११ अटकण से अटका अनंत सुख जोखमी, निकाचित कर्म या... २१३ अटकण को छेदनेवाला... २१४ अटकण का अंत लाओ २१६ सब से बड़ी अटकण, विषय... २१९ काम निकाल लो २२० बैर का कारखाना २२१ लोकसंज्ञा से अभिप्राय अवगाढ़ २२३ कमिशन चुकाए बिना तप २२६ उद्दीरणा, पराक्रम से प्राप्य ! २२७ पराक्रमभाव २३० [ २८ ] ' देखना' और 'जानना' है... २३३ परमात्मयोग की प्राप्ति २३५ मूल पुरुष की महत्ता २४० स्थूल पार करो, सूक्ष्मतम में... २४१ सामने आए हैं मोक्षस्वरूप २४१
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy