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________________ आप्तवाणी-६ २०७ प्रश्नकर्ता : कुछ लोगों को आप ज्ञान देते हैं, उनमें से कुछ को तो तुरंत ही फिट हो जाता है और कईयों को कितनी ही माथापच्ची करते हैं तो भी वह फिट नहीं होता। तो क्या उनमें शक्ति कम होती होगी? दादाश्री : वह शक्ति नहीं है। वे तो कर्म की पच्चड़ें टेढ़ी-मेढ़ी लाए होते हैं, तो कुछ लोगों की पच्चड़ें सीधी होती हैं। वे सीधी पच्चड़वाले तो खुद ही खींच लेते हैं और टेढ़ी पच्चड़वाले को अंदर जाने के बाद टेढ़ा होता है, वे ऐसे खींचे तो भी वह निकलता नहीं है। आंकड़े टेढ़े होते हैं। हमारी पच्चड़ें सीधी थीं इसलिए झटपट निकल गईं। हमें टेढ़ा नहीं आता। हमारा तो एकदम सीधा-सीधा और खुल्लमखुल्ला! और आप तो कुछ टेढ़ा सीखे होंगे। हो तो आप अच्छे घर के, परंतु बचपन में टेढ़ापन घुस गया तो क्या हो? भीतर टेढ़ी कीलें हों तो खींचते हुए ज़ोर आएगा और देर लगेगी! स्त्री जाति भीतर थोड़ा कपट रखती है, उनमें भीतर का साफ नहीं होता, कपट के कारण ही तो स्त्री जन्म मिला है। अब 'स्वरूपज्ञान' की प्राप्ति के बाद स्त्री जैसा कुछ रहा नहीं न? परंतु कीलें ज़रूर टेढ़ी हैं, उन्हें निकालने में ज़रा देर लगेगी न! वे कीलें सीधी होती तो फिर देर ही नहीं लगती न! पुरुष ज़रा भोले होते हैं। उसे स्त्री जरा समझाए तो वह समझ जाता है। और स्त्री भी समझ जाती है, कि भाई समझ गए और अभी जाएँगे बाहर। पुरुषों में भोलापन होता है। थोड़ा सा कपट किया था, तो मल्लिनाथ को तीर्थंकर के जन्म में स्त्री बनना पड़ा था! एक थोड़ा सा कपट किया था, फिर भी! कपट छोड़ता नहीं न! फिर भी अब स्वरूपज्ञान होने के बाद अपने में स्त्रीपना और पुरुषपना नहीं रहा। 'हम' 'शुद्धात्मा' हो गए! कुसंग का रंग... खुद की इच्छा नहीं हो फिर भी लोग बाहर जाते हैं और कुसंग में पड़ ही जाते हैं, कुसंग लगे बगैर रहता ही नहीं। कई लोग कहते हैं कि मैं शराबी के साथ घूमता हूँ, परंतु मैं शराब पीऊँगा ही नहीं। लेकिन तू घूम रहा है, यानी तभी से तू शराब पीने लगेगा। एक दिन संगत अपना स्वभाव दिखाए बिना रहेगी ही नहीं। इसलिए संगत छोड़।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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