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________________ २०० आप्तवाणी-६ डिस्चार्ज अब्रह्मचर्य, ये सभी डिस्चार्ज खाली हो जाएँगे, उसके बाद औरों के लिए निमित्त बनने की शक्ति उत्पन्न होगी! यह सब खाली हो जाए, तो आप परमात्मा ही बन गए! हमारा यह सब खाली हो गया है, इसीलिए तो हम निमित्त बने हैं! प्रश्नकर्ता : यानी पहले हमें 'जंग' खाली करने का काम करना है। दादाश्री : पुरुषार्थ करने से सबकुछ होगा! पुरुष हुआ इसलिए पुरुषार्थ में आ सकता है, ऐसा सब हमने कर दिया है! अब आप अपनी तरह से जितना पुरुषार्थ करो, उतना आपका! प्रश्नकर्ता : मैं मेरे शुद्धात्मा में रहँ, परंतु साथ-साथ सामनेवाले के शुद्धात्मा के साथ संधान होना चाहिए न? दादाश्री : सामनेवाले के शुद्धात्मा देखने से क्या फायदा है कि यह अपनी खुद की शुद्धि बढ़ाने के लिए है, न कि सामनेवाले व्यक्ति को लाभ पहुँचाने के लिए! खुद की शुद्ध दशा बढ़ाने के लिए सामनेवाले में शुद्धात्मा देखो, ताकि खुद की दशा बढ़ती जाए! प्रश्नकर्ता : एक शुद्धात्मा का दूसरे शुद्धात्मा के साथ संधान होता है या नहीं? दादाश्री : संधान कुछ भी नहीं है, यह स्वभाव है। यह 'लाइट', यह 'लाइट' और यह 'लाइट' - ये तीनों 'लाइटें' इकट्ठी करें फिर भी उनमें से हर एक लाइट का खुद का व्यक्तित्व तो अलग रहेगा। उसमें एक-दूसरे को कोई कुछ फ़ायदा नहीं पहुँचाता। प्रश्नकर्ता : तो फिर सामनेवाले के लिए हमें जो गलत भाव हैं, खराब भाव हैं, वे प्रतिक्रमण करने से कम हो जाएँगे क्या? दादाश्री : अपने खराब भाव टूट जाते हैं, अपने खुद के लिए ही है, यह सब। सामनेवाले को अपने से साथ कोई लेना-देना नहीं है।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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